भारतीय कंपनियों को अक्सर उनकी रूढ़िवादी रणनीतियों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है, खासकर उन कंपनियों को जो उच्च रिटर्न रेश्यो को सुरक्षित करते हुए नवाचार, R&D या नए ब्रांड्स में निवेश करने से कतराती हैं। Abakkus Asset Manager के संस्थापक Sunil Singhania ने इस सोच के लिए न केवल कंपनियों को बल्कि निवेशकों को भी जिम्मेदार ठहराया है। Wealth Formula पॉडकास्ट में N Mahalakshmi के साथ बातचीत के दौरान Singhania ने कहा कि भारतीय निवेशक अभी भी पारंपरिक सोच के दायरे में हैं और जोखिम लेने से बचते हैं, जिससे पूरी इकॉनमी में यह मानसिकता फैल गई है। Singhania ने उदाहरण देते हुए भारत की बड़ी IT कंपनियों जैसे Infosys, Wipro, TCS, और HCL का जिक्र किया, जो AI जैसे उभरते क्षेत्रों में निवेश करने के बजाय कैश जमा करने या buybacks के जरिए पैसा वापस करने में ज्यादा भरोसा करती रहीं। इसी तरह फार्मा सेक्टर में भी कंपनियां भारी R&D खर्च करने पर मार्केट की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करती हैं। उनका मानना है कि यह दौर अब बदल रहा है क्योंकि नई पीढ़ी की कंपनियां मुनाफा न देखकर भी growth को प्राथमिकता दे रही हैं और इस सोच को अपनाकर वे निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं। Singhania ने बताया कि एक समय था जब कंपनियों के लिए तात्कालिक लाभ और रिटर्न रेश्यो ज्यादा मायने रखते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे यह समझ बन रही है कि दीर्घकालिक विकास ही सफलता की कुंजी है। खासकर consumer और IT सेक्टर में, management को अब ‘comfort zone’ छोड़कर ‘growth zone’ में कदम रखना होगा। उन्होंने कहा कि अगर देश की अर्थव्यवस्था वास्तविक रूप से 6.5 से 7 प्रतिशत और नाममात्र 10-11 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, तो क्या कंपनियां दो प्रतिशत की वृद्धि से संतुष्ट रहेंगी? यह सवाल management को स्वयं भी सोचने पर मजबूर करेगा। Singhania ने आगे कहा कि growth पाने के लिए कंपनियों को acquisitions करने होंगे, प्रोडक्ट पोर्टफोलियो का विस्तार करना होगा या फिर नए-नए बिजनेस क्षेत्रों में कदम रखना होगा
अगर ऐसा नहीं किया गया, तो शेयर्स की वैल्यू लगातार गिरती रहेगी, जिससे शेयरहोल्डर्स का नुकसान होगा। उनका कहना है कि भारतीय इकॉनमी में निवेशकों के लिए यह समय सोचने और रणनीति बदलने का है। पिछले कुछ दशकों में भारतीय इक्विटी निवेश में तेजी आई है, लेकिन निवेशक अभी भी जोखिम लेने में हिचकिचाते हैं। Singhania ने इस बात पर भी जोर दिया कि निवेशकों की यह सोच कंपनियों की विकास रणनीतियों को सीमित कर रही है। उन्होंने कहा, “हम नए युग के निवेशक हैं, लेकिन हमारी सोच अभी भी पारंपरिक है, इसलिए हम कम जोखिम लेना चाहते हैं। यही सोच पूरी इंडस्ट्री में फैल गई है और कंपनियों पर भी इसका दबाव बनता है। ” यह बदलाव नए दौर की कंपनियों के आने से शुरू हुआ है, जो लाभ कमाने की बजाय बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने और विकास को प्राथमिकता देती हैं। ऐसे में बाकी कंपनियों के लिए भी यह आवश्यक हो गया है कि वे अपनी growth strategy पर पुनर्विचार करें। Infosys, Mphasis जैसे IT शेयरों में हाल ही में बढ़त देखी गई है, जो Fed की Jackson Hole कॉन्फ्रेंस के पहले निवेशकों के भरोसे को दर्शाता है। यह संकेत है कि बाजार में भी विकास के प्रति रुचि बढ़ रही है
Sunil Singhania की राय से स्पष्ट होता है कि भारतीय कंपनियों और निवेशकों दोनों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। सिर्फ उच्च रिटर्न रेश्यो को सुरक्षित रखने के चक्कर में आने वाले समय में कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में सतत विकास के लिए कंपनियों को जोखिम लेने और नए क्षेत्रों में निवेश करने से पीछे नहीं हटना होगा। यह वक्त है भारत के कॉर्पोरेट जगत के लिए अपने comfort zone को छोड़कर growth के रास्ते पर चलने का। निवेशकों को भी अपनी अपेक्षाएं बदलनी होंगी और दीर्घकालिक विकास को महत्व देना होगा। तभी भारतीय कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगी और निवेशक बेहतर रिटर्न हासिल कर सकेंगे। Sunil Singhania की यह बात भारतीय शेयर बाजार की दिशा और रणनीति दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है