अचानक छुट्टी में बदलाव से शेयर बाजार में मची हड़कंप, लेकिन सेटलमेंट नहीं हुआ प्रभावित इस महीने की शुरुआत में अचानक छुट्टी के दिन में बदलाव ने शेयर बाजार में बड़ा तहलका मचा दिया, लेकिन सौभाग्य से सेटलमेंट प्रक्रिया प्रभावित नहीं हुई। पहले सितंबर के पहले शुक्रवार को छुट्टी घोषित थी, जिसे अचानक बदलकर सोमवार, 8 सितंबर कर दिया गया। यह मामूली सा बदलाव तकनीकी दृष्टि से बेहद जटिल साबित हुआ और इससे स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर्स, कस्टोडियंस, FPIs, म्यूचुअल फंड्स और क्लियरिंग कार्पोरेशंस समेत सभी को रात-दिन एक कर देना पड़ा ताकि सेटलमेंट प्रक्रिया बिना किसी बड़ी समस्या के पूरी हो सके। मामला यह था कि SEBI का सेटलमेंट नियम T+1 पर आधारित होता है, यानी ट्रेड के अगले दिन ही सेटलमेंट हो जाना चाहिए। लेकिन इस अचानक छुट्टी के बदलाव के कारण सेटलमेंट को T+2 (कैश सेगमेंट के लिए) और T+3 (डेरिवेटिव सेगमेंट के लिए) पर ले जाना पड़ा। इस बदलाव की वजह से पूरे सेटलमेंट कैलेंडर में गड़बड़ी आ गई, क्योंकि एक्सचेंज और क्लियरिंग कॉर्पोरेशन साल भर के लिए छुट्टियों के आधार पर सेटलमेंट कैलेंडर पहले से सेट करते हैं। इस बदलाव के पीछे महाराष्ट्र सरकार का 5 सितंबर की छुट्टी को वापस लेकर 8 सितंबर को घोषित करना था। इसके बाद RBI ने बैंकिंग छुट्टियों के नियम के अनुसार बैंकिंग सिस्टम में भी 8 सितंबर को छुट्टी घोषित कर दी। चूंकि बैंक बंद थे, इसलिए फंड ट्रांसफर और सेटलमेंट रुक गए, जिससे निवेशकों को अपने फंड मिलने में देरी हुई। खासकर FPIs के लिए यह बड़े स्तर पर समस्या बन गई क्योंकि वे फॉरेक्स बुकिंग TOMO बेसिस पर करते हैं, यानी अगले दिन के एक्सचेंज रेट के आधार पर
छुट्टी के बदलाव ने फॉरेक्स बुकिंग और फंड मैनेजमेंट में गड़बड़ी पैदा कर दी। निवेशकों की स्थिति भी खराब हुई क्योंकि फंड क्रेडिट में देरी हुई और इससे मार्जिन की अतिरिक्त आवश्यकता पैदा हो गई। BTST (Buy Today Sell Tomorrow) ट्रेडर्स भी प्रभावित हुए, क्योंकि उन्हें अपनी बिक्री की रकम अगले दिन नहीं मिली। डेरिवेटिव सेगमेंट का सेटलमेंट जो 4, 5 और 8 सितंबर के ट्रेड्स का था, वह 9 सितंबर को किया गया। वहीं, कैश और SLBM सेगमेंट का सेटलमेंट 8 और 9 सितंबर के लिए 10 सितंबर को हुआ। यदि एक्सचेंज और क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ने इसे दो दिन में बांटा न होता, तो सेटलमेंट सिस्टम ट्रेडिंग वॉल्यूम की भारी मात्रा के कारण क्रैश हो सकता था। कस्टोडियंस और फंड अकाउंटिंग टीमें तो इस दौरान रात 4 बजे तक काम करती रहीं ताकि सेटलमेंट फाइल्स तैयार हो सकें। कुछ FPIs ने ‘One Nation, Multiple Regulations’ की नीति पर भी तंज कसा क्योंकि वे स्थानीय छुट्टियों के नियमों को समझ नहीं पाए। इस कारण सेटलमेंट में आई दिक्कतों को लेकर FPIs ने सवाल भी उठाए। एक बड़ा संकट टला क्योंकि उस समय कोई बड़ी कॉरपोरेट एक्शन नहीं हुई थी, सिवाय कुछ डिविडेंड के
अगर बोनस या कोई अन्य कॉरपोरेट एक्शन सेटलमेंट के इस बदलाव के दौरान प्रभावी हो जाता, तो निवेशकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता था। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी निवेशक ने शुक्रवार को कोई शेयर खरीदा और उसे सोमवार को सेटलमेंट का इंतजार था, तो बदलाव के कारण उसे यह शेयर मंगलवार को एक्स-बोनस आधार पर मिलते, जिससे उसका फायदा खत्म हो जाता। म्यूचुअल फंड्स के डेब्ट स्कीम्स पर भी इस बदलाव का असर पड़ा क्योंकि भुगतान छुट्टियों के कारण अगले बिजनेस डे पर हुआ, जिससे यूनिट प्राइस में बदलाव आया और निवेशकों को अगले दिन का NAV मिला। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के बदलावों से बचने के लिए नियामकों को प्रभावी और समय पर संचार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि ट्रेडिंग शुरू होने के बाद सेटलमेंट डेट में कोई बदलाव न हो। साथ ही, 24×7 भुगतान प्रणालियों जैसे NEFT, RTGS और UPI के युग में सवाल उठता है कि क्या सेटलमेंट कैलेंडर की जरूरत अब भी बनी हुई है। इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया कि स्टॉक मार्केट के सिस्टम और उसके पीछे काम करने वाले लोग कितनी मेहनत से इस तरह की अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना करते हैं, ताकि बाजार की विश्वसनीयता और निवेशकों का भरोसा बना रहे