Narnolia Financial Services के Chief Investment Officer Shailendra Kumar ने IT सेक्टर को लेकर सतर्कता बरतने की बात कही है। उनका कहना है कि तब तक व्यापक स्तर पर इस सेक्टर में कमाई में मजबूती के स्पष्ट संकेत नहीं मिलेंगे, तब तक वे पूरी तरह से निवेश बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। वे केवल कुछ चुनिंदा कंपनियों पर ध्यान दे रहे हैं जो मजबूत कमाई वृद्धि के लिए तैयार हैं। पिछले कुछ वर्षों में IT सेक्टर का प्रदर्शन धीमा रहा है और वर्तमान में भी इस क्षेत्र में कमाई की गति उतनी तेज नहीं हुई है जितनी उम्मीद की जाती थी। Shailendra Kumar ने FMCG सेक्टर की भी स्थिति पर चर्चा की। उनका कहना है कि FMCG के valuations अभी भी इसके कमाई वृद्धि के मुकाबले अधिक हैं। हालांकि पिछले पांच वर्षों में इस सेक्टर के valuations में कुछ नरमी आई है, लेकिन दीर्घकालिक नजरिए से इसमें और गिरावट की संभावना बनी हुई है। यही कारण है कि उनका दृष्टिकोण इस सेक्टर में कंपनियों को लेकर बेहद विशिष्ट और चयनात्मक है। इस साल उन्होंने FMCG सेक्टर की दो ऐसी कंपनियों में निवेश शुरू किया है, जो अपनी मुख्य श्रेणियों में मजबूत नेतृत्व बनाए हुए हैं और रणनीतिक अधिग्रहण के जरिए नए उभरते क्षेत्रों में शीर्ष स्थान हासिल कर रही हैं। कॉर्पोरेट कमाई के विषय में उन्होंने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष के मध्य से कॉर्पोरेट कमाई में धीमी गति देखी गई है, जिसका कारण वित्तीय, मौद्रिक और नियामकीय कड़ाई रही है
हालांकि, वर्तमान वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह कड़ाई कम हुई है और आने वाले दो तिमाहियों में इसका सकारात्मक प्रभाव कमाई पर दिखना शुरू हो जाएगा। Kumar ने यह भी कहा कि कंपनियों के मार्जिन प्रोफाइल इस धीमी गति के बावजूद मजबूत बने हुए हैं और मौजूदा कमाई वृद्धि अपेक्षाएं सावधानीपूर्ण हैं, इसलिए आगे कमाई के अनुमान में बड़ी कटौती की संभावना कम है। अमेरिका में चल रहे टैरिफ विवादों को लेकर उन्होंने कहा कि वर्तमान अमेरिकी टैरिफ नीति अस्थिर और अप्रत्याशित है, इसलिए भविष्य में और भी कठोर व्यापार प्रतिबंधों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। भारत-यूरोपियन यूनियन के व्यापार वार्तालापों का निपटान और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के टैरिफ की वैधता पर निर्णय इस संदर्भ में महत्वपूर्ण होंगे। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि केवल ट्रंप के टैरिफ ही जोखिम नहीं हैं, बल्कि वैश्विक बाजारों में भी अनेक जोखिम मौजूद हैं जो भारतीय बाजार की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था और बाजारों की स्थिति पर Kumar ने बताया कि पिछले दशक में वैश्विक GDP वृद्धि बेहद कमजोर रही है, जबकि प्रमुख वैश्विक बाजारों में P/E अनुपात अपने उच्च स्तरों के करीब हैं। उदाहरण के तौर पर, अमेरिकी बाजार का P/E 32.1 है, जो पिछले पांच वर्षों के उच्चतम स्तर के करीब है, जबकि जर्मनी का DAX 29.8 पर ट्रेड कर रहा है। इस तरह के उच्च valuations के बीच वैश्विक आर्थिक स्थिरता को लेकर चिंता बनी हुई है, जिससे बाजारों में अस्थिरता की संभावना बढ़ जाती है। Pharma सेक्टर के बारे में उन्होंने कहा कि वर्तमान अमेरिकी टैरिफ का भारतीय फार्मा कंपनियों पर तत्काल कोई बड़ा प्रभाव नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत का फार्मा निर्यात ज्यादातर generic दवाओं का है, जो वर्तमान टैरिफ के दायरे में नहीं आतीं
वहीं, जिन कंपनियों के पास पेटेंटेड दवाओं का कारोबार है, वे या तो अमेरिकी उत्पादन संयंत्रों का उपयोग करती हैं या आउटसोर्सिंग के जरिए उत्पादन करती हैं, जिससे टैरिफ का सीधा प्रभाव कम होता है। हालांकि, भविष्य में जनरिक फॉर्मूले पर भी टैरिफ लगने की संभावना को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, इसलिए सतर्कता जरूरी है। IT सेक्टर के बड़े और मध्यम आकार के स्टॉक्स पर Kumar ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से उनका IT सेक्टर में अल्लोकेशन कम है, क्योंकि कमाई वृद्धि धीमी रही है। हालांकि, वर्तमान valuations 2014-2019 के निचले स्तरों की तुलना में कहीं अधिक हैं। इसलिए वे इस सेक्टर में पूरी तरह से सतर्क बने हुए हैं। वे केवल उन्हीं कंपनियों में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं जिनके कमाई में सुधार की स्पष्ट संभावनाएं दिखती हैं। कुल मिलाकर, Shailendra Kumar का मानना है कि फिलहाल बाजार में सतर्कता और चयनात्मक निवेश की रणनीति अपनाना ही बेहतर होगा। वैश्विक और घरेलू दोनों स्तरों पर जोखिम बने हुए हैं, जिनका प्रभाव भारतीय स्टॉक मार्केट पर पड़ सकता है। इसलिए निवेशकों को व्यापक दृष्टिकोण के साथ ही कंपनियों के फंडामेंटल और सेक्टर की स्थिति को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए