SEBI ने IPO से लेकर Mutual Funds तक किए बड़े बदलाव, जानिए कैसे बदलेगा Stock Market का खेल

Saurabh
By Saurabh

Securities and Exchange Board of India (SEBI) ने अपने हालिया बोर्ड मीटिंग में 12 सितंबर को कई अहम सुधारों को मंजूरी दी है, जो IPO नियमों, alternative funds, FPIs, mutual funds और market infrastructure तक फैले हुए हैं। इन बदलावों का मकसद बाजार को और ज्यादा पारदर्शी, सशक्त और निवेशकों के अनुकूल बनाना है। आइए जानते हैं इन नए नियमों से किस तरह शेयर बाजार की तस्वीर बदलने वाली है। सबसे बड़ा बदलाव Mega IPO के नियमों में आया है। अब बड़ी कंपनियों के लिए IPO प्रक्रिया और आसान हो जाएगी। जिन कंपनियों का market cap 50,000 करोड़ रुपये से ऊपर है, उनके लिए minimum public offer की सीमा अब Rs 1,000 करोड़ प्लस 8% तय की गई है। वहीं, जिन कंपनियों का market cap 1 से 5 लाख करोड़ रुपये के बीच है, उन्हें कम से कम Rs 6,250 करोड़ प्लस 2.75% का IPO करना होगा। सबसे बड़ी कंपनियों के लिए, जिनका market cap 5 लाख करोड़ रुपये से ऊपर है, यह सीमा Rs 15,000 करोड़ प्लस 1% रखी गई है, मगर न्यूनतम 2.5% floor भी लागू होगा। इतना ही नहीं, सार्वजनिक float 25% तक पहुंचाने की अवधि 10 साल तक बढ़ा दी गई है, जिससे mega listings पर लगने वाला दबाव कम होगा। Anchor investor allocation को भी बड़ा बढ़ावा मिला है

अब IPO में anchor investors को कुल IPO साइज का 40% हिस्सा दिया जाएगा, जो पहले एक-तिहाई था। इसमें insurance और pension funds को 7% मिलेगा, जबकि mutual funds को 33% तक का हिस्सा मिलेगा। IPO के आकार के अनुसार anchor allottees की संख्या भी बढ़ाई जाएगी, जो हर Rs 250 करोड़ ब्लॉक के लिए 5 से बढ़कर 15 हो जाएगी। इससे anchor investors की भागीदारी और अधिक व्यापक होगी। Related-party transactions (RPT) के thresholds में भी सुधार हुआ है। अब turnover के हिसाब से लिमिट्स तय की गई हैं। जिन कंपनियों का turnover 20,000 करोड़ रुपये तक है, उनके लिए 10% turnover लिमिट लागू होगी। 20,001 से 40,000 करोड़ रुपये turnover वाली कंपनियों के लिए Rs 2,000 करोड़ प्लस 5% incremental turnover की सीमा रखी गई है। 40,000 करोड़ रुपये से ऊपर turnover वाली कंपनियों के लिए यह कैप Rs 3,000 करोड़ प्लस 2.5% incremental turnover के साथ Rs 5,000 करोड़ की ceiling पर सीमित है। यह बदलाव कंपनियों के बीच पारदर्शिता बढ़ाने के लिए किया गया है

FPIs के लिए भी नया अवसर खुला है। अब GIFT City के IFSC में चल रहे रिटेल स्कीम्स, चाहे वे Indian sponsors या managers द्वारा संचालित हों, वे भी Foreign Portfolio Investors के रूप में रजिस्टर कर सकते हैं। Sponsor contribution की सीमा corpus/AUM का 10% रखी गई है, जिससे घरेलू जुड़े संस्थानों के लिए FPI मार्ग खुला होगा। Alternative Investment Funds (AIFs) के क्षेत्र में भी SEBI ने बड़ा कदम उठाया है। अब AI-only AIFs की एक नई श्रेणी लाई गई है, जो सिर्फ accredited investors के लिए होगी और जिसमें investor-protection नियम कुछ हल्के होंगे। Large Value Funds (LVFs) के लिए minimum ticket size को Rs 70 करोड़ से घटाकर Rs 25 करोड़ किया गया है और उन्हें mandatory audits से छूट भी मिलेगी, जिससे compliance का बोझ कम होगा। SEBI ने विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए भी SWAGAT-FI फ्रेमवर्क शुरू किया है। Sovereign wealth funds, central banks, pension funds, insurers और ऐसे trusted investors को अब 10 साल की registration अवधि मिलेगी, जबकि वर्तमान में यह अवधि 3 साल होती थी। ये निवेशक single demat account का उपयोग कर सकेंगे और FVCI नियम से भी छूट प्राप्त होंगे, जिससे विदेशी निवेश को स्थिरता मिलेगी। REITs और InvITs के classification में भी बदलाव किए गए हैं

अब REITs को equity instruments के रूप में माना जाएगा, जिससे वे equity indices और mutual fund equity allocation limits के अंतर्गत आएंगे। InvITs को hybrid instruments के रूप में ही रखा गया है। Strategic investors की eligibility बढ़ाकर अब QIBs, बड़े NBFCs, और Rs 500 करोड़ से ऊपर net worth वाले family trusts को भी शामिल किया गया है। Mutual funds के नियमों में exit load को 5% से घटाकर 3% कर दिया गया है। इसके साथ ही financial inclusion को बढ़ावा देने के लिए distributors को B-30 शहरों और महिला निवेशकों के लिए first-time investors को ऑनबोर्ड करने पर incentives देने की अनुमति दी गई है, जिसमें 1% तक inflows पर या अधिकतम Rs 2,000 तक का प्रोत्साहन शामिल है। Investment Advisers (IAs) और Research Analysts (RAs) के लिए भी नियम आसान किए गए हैं। अब किसी भी discipline के graduates NISM certifications के साथ qualify कर सकते हैं। साथ ही address proof, CIBIL रिपोर्ट या net worth certificates जैसी दस्तावेजी जरूरतें हटा दी गई हैं। जब तक PaRRVA सिस्टम लागू नहीं होता, वे पिछले दो वर्षों के प्रदर्शन रिकॉर्ड साझा कर सकते हैं। Market infrastructure institutions (MIIs) जैसे stock exchanges में governance को मजबूत करने के लिए दो Executive Directors नियुक्त करना अनिवार्य कर दिया गया है — एक risk/compliance के लिए और दूसरा operations के लिए

CTO और CISO की जिम्मेदारियां भी compliance framework के अंतर्गत आ गई हैं, जिससे संस्थागत जवाबदेही बढ़ेगी। SEBI Chairperson Tuhin Kanta Pandey ने साफ कहा है कि नियमों को आसान करते हुए भी regulator बाजार में किसी प्रकार की गलत गतिविधियों पर कड़ी नजर रखेगा। उन्होंने Jane Street मामले का जिक्र करते हुए enforcement और surveillance की अहमियत पर जोर दिया है, जो यह दर्शाता है कि SEBI तकनीकी क्षमता बढ़ाने और नियमों को सख्ती से लागू करने में जुटा रहेगा। साथ ही, छोटे निवेशकों की सुरक्षा के लिए भी संरचनात्मक बदलाव और सख्त सुरक्षा उपायों पर काम किया जाएगा। इन तमाम सुधारों से यह स्पष्ट होता है कि SEBI ने भारतीय शेयर बाजार को और अधिक पारदर्शी, निवेशकों के लिए सुरक्षित और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिए एक नई दिशा निर्धारित की है। आने वाले समय में इन बदलावों का असर बाजार के हर हिस्से पर नजर आएगा

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