SEBI ने अपने नियमों में अहम बदलाव करते हुए Related Party Transactions (RPTs) के disclosure और approval thresholds में बड़ा संशोधन किया है। यह बदलाव मुख्य रूप से कंपनियों के annual consolidated turnover के आधार पर scale-based thresholds को लागू करने के लिए किए गए हैं, जिससे न केवल investor protection और business ease के बीच बेहतर संतुलन स्थापित होगा, बल्कि listed entities के लिए compliance का बोझ भी कम होगा। SEBI के अध्यक्ष Tuhin Kanta Pandey के अनुसार ये amendments संबंधित पक्ष लेनदेन के नियमों में व्यावहारिक चुनौतियों को दूर करने और अस्पष्टताओं को खत्म करने के उद्देश्य से लागू किए गए हैं। अब कंपनियों के लिए material RPTs की परिभाषा और thresholds उनके कुल consolidated turnover के आधार पर तय की जाएंगी। जिन कंपनियों का annual consolidated turnover 20,000 करोड़ रुपये तक है, उनके लिए threshold 10% निर्धारित किया गया है। वहीं, जिनकी turnover 20,001 करोड़ से 40,000 करोड़ रुपये के बीच है, उनके लिए threshold 2,000 करोड़ रुपये प्लस 20,000 करोड़ रुपये से ऊपर के turnover का 5% होगा। इसके अतिरिक्त, जिन कंपनियों का turnover 40,000 करोड़ रुपये से अधिक है, उनके लिए threshold 3,000 करोड़ रुपये प्लस 40,000 करोड़ रुपये से ऊपर के turnover का 2.5% या 5,000 करोड़ रुपये में से जो कम होगा, उसे लागू किया जाएगा। Audit Committee के approval के लिए भी thresholds में बदलाव किया गया है, खासकर उन RPTs के लिए जो subsidiaries द्वारा किए जाते हैं। अब, जिन RPTs की राशि 1 करोड़ रुपये से अधिक है, चाहे वह एकल लेनदेन हो या वित्तीय वर्ष में कई लेनदेन का योग, उनके लिए Audit Committee की prior approval जरूरी होगी। इससे पहले, subsidiaries द्वारा किए गए कुछ material RPTs के लिए केवल shareholders की मंजूरी आवश्यक होती थी, लेकिन Audit Committee की मंजूरी की जरूरत नहीं होती थी, जिससे नियमों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती थी
SEBI ने माना है कि इस ambiguity को दूर करने के लिए thresholds में संशोधन आवश्यक था। SEBI ने अगस्त में एक consultation paper जारी किया था जिसमें इन scale-based thresholds की जरूरत पर जोर दिया गया था। उस समय SEBI ने स्पष्ट किया था कि turnover के अनुसार materiality threshold को बढ़ाना आवश्यक है ताकि ज्यादा बड़ी turnover वाली कंपनियों के लिए material RPTs की संख्या उपयुक्त रहे और छोटे-छोटे लेनदेन पर अनावश्यक compliance का बोझ न पड़े। इस नए नियम से यह सुनिश्चित होगा कि जिन कंपनियों की turnover बढ़ेगी, उनके लिए materiality की सीमा भी बढ़ेगी, जिससे केवल महत्वपूर्ण लेनदेन ही material RPT के दायरे में आएंगे। वर्तमान में materiality threshold 1,000 करोड़ रुपये या 10% annual consolidated turnover में से जो कम होता है, उसे माना जाता है। हालांकि, जब turnover 10,000 करोड़ रुपये से अधिक होता है, तब 1,000 करोड़ रुपये का fixed threshold लागू हो जाता है, जो बड़ी कंपनियों के लिए compliance को जटिल बनाता था। नए नियमों के तहत turnover के आधार पर thresholds को अधिक लचीला बनाया गया है, जिससे listed entities को नियमों का पालन करने में आसानी होगी। SEBI ने FY24 और FY25 के RPT data का back testing भी किया है जिसमें top 100 listed entities को turnover के आधार पर चुना गया था। इस analysis से पता चला कि नए thresholds लागू होने पर material RPTs की संख्या लगभग 60% घट गई है, जिससे listed companies के लिए shareholders की approval प्रक्रिया में काफी राहत मिली है। इससे न केवल compliance की जटिलताएं कम होंगी, बल्कि कंपनियों को अपने व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने में भी मदद मिलेगी
इसके अतिरिक्त, subsidiaries द्वारा किए जाने वाले material RPTs के लिए भी scale-based threshold mechanism लागू किया गया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि छोटे subsidiaries के छोटे लेनदेन पर बड़े listed entity की Audit Committee को बार-बार approval देने की जरूरत न पड़े, जिससे governance में भी सुधार होगा। यह बदलाव SEBI के प्रयासों का हिस्सा है ताकि capital markets में transparency और investor protection के साथ-साथ ease of doing business को बढ़ावा दिया जा सके। SEBI Chairman Tuhin Kanta Pandey ने कहा कि ये amendments practical challenges को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं ताकि listed entities पर compliance burden कम हो और वे अपने core business पर ध्यान केंद्रित कर सकें। कुल मिलाकर, SEBI ने related party transactions के नियमों में जो बदलाव किए हैं, वे भारत के capital markets की governance को और मजबूत करेंगे। नए scale-based thresholds से listed companies को regulatory compliances को बेहतर तरीके से पूरा करने में मदद मिलेगी और investors के हितों की भी सुरक्षा होगी। यह कदम भारत के शेयर बाजारों में निवेशकों और कंपनियों दोनों के लिए सकारात्मक संकेत माना जा रहा है