अमेरिका द्वारा प्रस्तावित नए टैरिफ़ नीति ने वैश्विक सप्लाई चेन में बड़े और दीर्घकालिक बदलावों को जन्म देने की संभावना बढ़ा दी है। Client Associates के Co-Founder Rohit Sarin ने Moneycontrol को दिए गए इंटरव्यू में बताया कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा Copper पर 50% और Pharmaceutical आयात पर 200% तक के टैरिफ़ लगाने के प्रस्ताव से कई उद्योगों में लागतों में भारी वृद्धि हो सकती है, जो खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कंस्ट्रक्शन, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) और सोलर पैनल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को प्रभावित करेगा। Sarin ने कहा कि Copper पर 50% टैरिफ़ से संबंधित उद्योगों की इनपुट लागतें तुरंत बढ़ेंगी, जिससे उत्पादन की लागत में इजाफा होगा और अंततः उपभोक्ता मूल्य भी बढ़ने की संभावना है। चिली, पेरू और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख Copper निर्यातक देशों के लिए अमेरिकी बाजार में निर्यात कम होने का जोखिम है। इसके जवाब में अमेरिकी आयातक घरेलू उत्पादन बढ़ाने या ऐसे देशों से खरीदारी बढ़ाने की रणनीति अपनाएंगे जो राजनीतिक रूप से अमेरिका के करीब हैं या जिनके साथ Free Trade Agreements (FTAs) हैं। यह बदलाव वैश्विक Copper सप्लाई चेन के पुनर्गठन को तेज करेगा। फार्मास्युटिकल सेक्टर में प्रस्तावित 200% टैरिफ़ का प्रभाव और भी ज्यादा गंभीर होगा। Sarin ने चेतावनी दी कि इससे अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी दबाव बनेगा और दवाओं की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि होगी। फार्मा कंपनियों को उत्पादन को अमेरिका में स्थानांतरित करना पड़ सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया पूंजीगत रूप से महंगी और समय-साध्य है, खासकर जटिल दवा निर्माण के लिए। इस वजह से दवाओं की उच्च कीमतें आम जनता की पहुंच से बाहर हो सकती हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा
वैश्विक सप्लाई चेन में हो रहे इस बदलाव का एक मुख्य कारण अमेरिकी प्रशासन की ट्रेड पॉलिसी में आ रही कड़ी प्रोटेक्शनिस्ट नीति है। इसके चलते कंपनियां अपने सप्लाई चेन को पुनः व्यवस्थित कर रही हैं, जिससे जोखिम कम किया जा सके। इस रणनीति के अंतर्गत “China+1” मॉडल लोकप्रिय हो रहा है, जिसका उद्देश्य चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना है। चीन के अलावा वियतनाम, भारत, मैक्सिको, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देश मैन्युफैक्चरिंग और असेंबली के लिए आकर्षक विकल्प बनकर उभर रहे हैं। साथ ही, अमेरिका में CHIPS Act, Inflation Reduction Act (IRA) जैसे कानूनों और प्रोत्साहनों के कारण घरेलू मैन्युफैक्चरिंग में निवेश बढ़ रहा है, विशेषकर सेमीकंडक्टर, क्लीन टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रिक व्हीकल सेक्टर में। ये बदलाव वैश्विक व्यापार और निवेश के पैटर्न को नया स्वरूप दे रहे हैं और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए अवसर पैदा कर रहे हैं। Rohit Sarin ने यह भी बताया कि अमेरिकी टैरिफ़ नीतियों से महंगाई दर (Inflation) बढ़ने की संभावना है। क्योंकि इन टैरिफ़ों के चलते उत्पादों की कुल लागत बढ़ेगी, साथ ही कंपनियों द्वारा सप्लाई चेन को पुनः व्यवस्थित करने से उत्पादन लागत में वृद्धि होगी। हालांकि, महंगाई पर इसका प्रभाव केवल टैरिफ़ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसके लिए अमेरिकी सरकार की मौद्रिक और वित्तीय नीतियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होगा। फेडरल रिजर्व की मौजूदा ब्याज दर नीति पर भी Sarin ने टिप्पणी की
उनका मानना है कि वर्तमान में Federal Reserve ब्याज दरों को स्थिर रख सकता है और संभवतः 2026 तक कटौती नहीं करेगा। ब्याज दरों में बदलाव की समयसीमा महंगाई के स्तर, ट्रेड डील्स और नए कर बिल के प्रभावों पर निर्भर करेगी। वहीं भारतीय आर्थिक परिदृश्य पर Sarin ने कहा कि भारत में निजी उपभोग पिछले कुछ वर्षों में धीमा रहा है, लेकिन हाल ही में आयकर में छूट और कम ब्याज दरों के माहौल से उपभोग में वृद्धि होने की उम्मीद है। पूंजीगत वस्तुओं (Capital Goods) के क्षेत्र में फिलहाल Sarin का दृष्टिकोण तटस्थ है। वे बताते हैं कि इस क्षेत्र में वैल्यूएशन्स काफी ऊंचे हैं इसलिए निवेश में चयनात्मकता की जरूरत है। वहीं PSU स्टॉक्स के संदर्भ में उन्होंने कहा कि सभी PSU स्टॉक्स उचित मूल्य पर नहीं हैं। वित्तीय सेवाओं और बैंकों के स्टॉक्स उचित मूल्य पर हैं, जबकि रक्षा क्षेत्र के स्टॉक्स प्रीमियम पर ट्रेड कर रहे हैं। इसलिए इस सेक्टर में भी निवेशकों को सावधानी बरतनी होगी। इस प्रकार, अमेरिकी टैरिफ़ की नई नीतियों से वैश्विक सप्लाई चेन में व्यापक और गहरे परिवर्तन होंगे, जिनका प्रभाव न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि वैश्विक आर्थिक संतुलन पर भी पड़ेगा। Copper और Pharmaceutical जैसे संवेदनशील सेक्टर्स में लागत वृद्धि से उद्योगों पर दबाव बढ़ेगा और वैश्विक व्यापार की रणनीतियों को नया आकार मिलेगा
आने वाले समय में इन नीतियों के कारण वैश्विक आर्थिक ढांचे में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं