सेंसेक्स कंपनियों के लिए बड़ा बदलाव: Related Party Transactions में अब मिलेगी पूरी पारदर्शिता, जानिए क्या हैं नए नियम

Saurabh
By Saurabh

आज से करीब 5,000 listed companies के लिए Related Party Transactions (RPTs) के अनुमोदन में नई पारदर्शिता नियम लागू हो गए हैं। Securities and Exchange Board of India (Sebi) द्वारा जारी यह नया framework 1 सितंबर से प्रभावी हो गया है, जिसका मकसद निवेशकों को बेहतर और स्पष्ट जानकारी उपलब्ध कराकर उनके फैसलों को मजबूत बनाना है। Related Party Transactions वे व्यापारिक लेन-देन होते हैं जो कंपनी और उससे जुड़े अन्य पक्षों के बीच होते हैं, जैसे कि subsidiaries, key management personnel या बड़े शेयरधारक। अक्सर इन लेन-देन में पारदर्शिता न होने के कारण governance से जुड़ी चिंताएं उठती हैं क्योंकि इनमें conflicts of interest या कंपनी संसाधनों के दुरुपयोग की संभावना होती है। इस साल जून में Sebi ने Industry Standards Forum (ISF) द्वारा निर्धारित न्यूनतम disclosure standards को लागू करने का निर्देश दिया था। ISF में FICCI, CII, ASSOCHAM जैसे प्रमुख उद्योग संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं, जो Sebi और stock exchanges के साथ मिलकर काम करते हैं। इन मानकों के तहत listed कंपनियों को RPT प्रपोजल की मंजूरी लेने से पहले audit committees और shareholders को विस्तृत जानकारी प्रदान करनी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि अब explanatory statements को और अधिक स्पष्ट और विस्तारपूर्ण बनाया जाएगा। MMJC & Associates के संस्थापक Makarand M Joshi ने बताया कि explanatory statements में Companies Act, 2013 के मानकों से कहीं अधिक जानकारी शामिल होगी। इसमें audit committee के सामने रखे गए डेटा, pricing methodology, key managerial personnel से प्रमाणपत्र, और किसी भी रिपोर्ट के QR code जैसे तत्व शामिल होंगे

इस तरह के दस्तावेज़ तैयार करने के लिए कंपनियों को अब और अधिक सतर्कता बरतनी होगी ताकि shareholders सही और पूर्ण जानकारी के आधार पर निर्णय ले सकें। ISF के अनुसार, management को related parties के shareholding या उनके द्वारा कंपनी के profit & loss में योगदान की जानकारी देनी होगी, चाहे वह सीधे हो या अप्रत्यक्ष। साथ ही संबंधित पार्टी के listed entity में हिस्सेदारी का ब्यौरा भी देना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, पिछले लेन-देन, वित्तीय प्रदर्शन, और प्रस्तावित लेन-देन के स्वरूप, आकार तथा तर्क को भी स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना होगा। नए नियम generic disclosures से आगे बढ़कर loans, inter-corporate deposits, advances, या investments से जुड़े लेन-देन में fund source और rationale की जानकारी भी मांगते हैं। अगर कोई guarantee, indemnity या comfort letter दिया जाता है, तो उसका कारण भी बताना होगा। borrowings, sale, lease या subsidiaries के assets की बिक्री जैसी स्थितियों में bidding details और bidders की जानकारी audit committee को देनी होगी। royalty payments के मामले में तो नियम और भी सख्त हैं। कंपनियों को पिछले तीन वर्षों की royalty भुगतान का उद्देश्य, brand उपयोग, तकनीकी know-how, professional या management fees के भुगतान का breakup देना होगा। साथ ही royalty growth की तुलना turnover, profit after tax, और dividends की वृद्धि से करनी होगी

तकनीकी ट्रांसफर से मिलने वाले लाभों के प्रमाण और industry peers के साथ royalty का तुलनात्मक विश्लेषण भी देना होगा। Sebi ने FY14 से FY23 तक 233 listed कंपनियों के royalty payments का व्यापक अध्ययन किया था। इस अध्ययन में कई ऐसे उदाहरण मिले जहाँ कंपनियों ने related parties को अपने net profits का 20% से अधिक royalty भुगतान किया। चिंता की बात यह थी कि कुछ loss-making कंपनियां भी royalty का भुगतान कर रही थीं। कुल मिलाकर 1,538 royalty payments ऐसे थे जो 5% turnover अनुमोदन सीमा से कम थे, जबकि 185 मामलों में loss-making कंपनियों ने कुल 1,355 करोड़ रुपये की royalty दी। ऐसे व्यवहार ने governance और shareholder value पर सवाल खड़े किए। नए framework के तहत कंपनियों को CEO, CFO या अन्य key managerial personnel और प्रत्येक promoter-director से यह प्रमाणपत्र लेना होगा कि प्रस्तावित RPT सार्वजनिक शेयरधारकों के हितों के खिलाफ नहीं है। यदि कोई promoter-director प्रमाणपत्र नहीं देता, तो यह सूचना audit committee और shareholders को अनुमोदन से पहले देनी होगी। Corporate Professionals के संस्थापक Pavan Vijay के अनुसार, यह RPT Industry Standards निवेशकों का विश्वास बढ़ाएंगे क्योंकि इससे related party disclosures में पारदर्शिता और तुलनात्मकता सुनिश्चित होगी। इससे निवेशक promoters या key stakeholders से जुड़े लेन-देन की निष्पक्षता का बेहतर आकलन कर सकेंगे, governance कमियों को पहचान सकेंगे और कंपनियों तथा उद्योगों के disclosures की तुलना कर सकेंगे

उन्होंने कहा कि professionals को सुनिश्चित करना चाहिए कि disclosures structured format के अनुरूप हों, लेन-देन की शर्तें स्पष्ट हों, अधूरी या अस्पष्ट जानकारी न दी जाए और valuation या अन्य reports audit committee और shareholders को QR code या web-link के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएं। Nangia Anderson LLP ने भी कहा है कि इस बदलाव से governance बेहतर होगा और कंपनियों के regulatory risk में कमी आएगी, साथ ही निवेशकों और अन्य stakeholders के लिए स्पष्टता और विश्वास बढ़ेगा। Sebi ने इस circular को लागू करने की शुरुआत 1 जुलाई 2025 से करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उद्योग की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए इसे 1 सितंबर तक स्थगित कर दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस नए नियम के लागू होने से भारतीय पूंजी बाजारों में governance की गुणवत्ता बेहतर होगी। shareholders को अधिक विस्तृत जानकारी मिलने से related party dealings में छुपी हुई बातें सामने आएंगी और investor confidence में वृद्धि होगी। इसके अलावा Sebi ने प्रस्ताव रखा है कि shareholder approval threshold को 5,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जाए और 15 करोड़ रुपये से कम के लेन-देन के लिए disclosures की आवश्यकता न हो। यह कदम compliance को सरल बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और corporate governance को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया गया है। इस बदलाव के साथ ही भारतीय stock market में न केवल listed कंपनियों की पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि निवेशकों को भी अपने निवेश के फैसले में अधिक भरोसा मिलेगा। Related Party Transactions के मामले में यह नया नियम एक बड़ा कदम साबित होगा, जो governance और investor protection दोनों को सशक्त करेगा

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