अमेरिका द्वारा अचानक H-1B visa fees में भारी बढ़ोतरी और साथ ही व्यापारिक टैरिफ की बढ़ती आशंकाओं ने भारतीय बाजारों में हड़कंप मचा दिया है। इस कदम ने न केवल IT सेक्टर को प्रभावित किया है, बल्कि निवेशकों को भारत की ग्रोथ स्टोरी पर गंभीरता से पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव से भारत की आर्थिक प्रगति और बाजार के प्रीमियम वैल्यूएशन पर सवाल उठेंगे, क्योंकि अमेरिका ने वीजा और ट्रेड दोनों को व्यापारिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस फैसले के तुरंत बाद प्रमुख भारतीय IT कंपनियों के ADRs में 4 से 7 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई, हालांकि कुछ हद तक वे वापस उबरने में सफल रहीं। लेकिन इसका प्रभाव केवल IT कंपनियों तक सीमित नहीं होगा, बल्कि यह स्थिति आर्थिक स्तर पर भी व्यापक समस्याएं पैदा कर सकती है। बाजार विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यदि विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) इस दबाव में अपने निवेश को कम करने लगें तो भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ सकता है। साथ ही निर्यात केंद्रित सेक्टर्स की आय संभावनाओं में भी गिरावट आ सकती है। एक शीर्ष ब्रोकिंग फर्म के विश्लेषक ने बताया कि “अगर वीजा शुल्क बढ़ने से परियोजनाएं देरी का शिकार होती हैं या मार्जिन कम होते हैं, तो विदेशी मुद्रा प्रवाह धीमा हो जाएगा, जिससे रुपया कमजोर होगा। इसके साथ ही FIIs की इक्विटी होल्डिंग्स में कटौती का खतरा भी बना रहेगा क्योंकि पहले से ही बाजार में ऊंचे मूल्यांकन को लेकर चिंता है। ” IT सेक्टर के बाहर भी इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं
इस कदम के समय और उसकी तीव्रता को देखते हुए यह साफ है कि भारत की अमेरिकी बाजारों पर निर्भरता तकनीकी प्रतिभा और वस्तु निर्यात दोनों के मामले में एक बड़ी कमजोरी बन रही है। Axis Securities के SVP – Research, Rajesh Palviya ने कहा, “H-1B visa fee hike ने भारतीय बाजारों में भारी अस्थिरता पैदा कर दी है, जिसका तत्काल प्रभाव IT और टेक्नोलॉजी शेयरों पर पड़ा है। इसके साथ ही भारत पर 50% तक के टैरिफ की धमकी भी मंडरा रही है, जिसका कोई समाधान नजर नहीं आ रहा। ये दोनों जोखिम मिलकर बाजार की सीमा पार मांग और मार्जिन की संभावनाओं का सही अनुमान लगाना मुश्किल बना रहे हैं। ” Prudent Equity के फाउंडर और CIO Siddharth Oberoi ने कहा कि इसका असर केवल निकट भविष्य की कमाई तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि US-India संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है और भविष्य के व्यापारिक समझौतों को जटिल बना सकता है। Oberoi ने बताया, “इस बढ़ोतरी का असर सीधे भारतीय IT कंपनियों और अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनियों पर पड़ेगा, ठीक वैसे ही जैसे टैरिफ मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट्स को प्रभावित करते हैं। ” आंकड़ों के अनुसार H-1B वीजा प्राप्त करने वालों में करीब 70% भारतीय हैं, जबकि चीन की हिस्सेदारी मात्र 10% है, जिससे यह कदम विशेष रूप से भारत को निशाना बनाता नजर आता है। Oberoi ने यह भी कहा कि यह स्थिति भारतीय सरकार पर दबाव बनाएगी कि वह H-1B वीजा मुद्दे को फिर से वार्ता की मेज पर लाए, जहां अमेरिका के पास बढ़त होगी। Axis Asset Management के President और CIO Ashish Nigam ने चेतावनी दी कि इस फैसले का प्रभाव केवल टैरिफ तक सीमित नहीं रहेगा। उन्होंने कहा, “भारत की GDP में वस्तु निर्यात का हिस्सा केवल 2% है, जबकि सॉफ्टवेयर निर्यात लगभग 10% है
यह केवल IT कंपनियों का मामला नहीं है, बल्कि लाखों नौकरियां दांव पर हैं। अगले छह महीनों में आय पर बड़ा दबाव देखने को मिल सकता है, हालांकि भविष्यवाणी करना कठिन है। ” IT सेक्टर के अलावा फार्मा, ऑटो कंपोनेंट्स और कुछ औद्योगिक निर्यातक भी अमेरिका के बाजार पर निर्भर हैं और इस फैसले से प्रभावित होने की संभावना है। एक घरेलू ब्रोकरेज फर्म के विश्लेषक के अनुसार, “अगर प्रोजेक्ट स्टाफिंग या नियामक अनुमोदन में देरी होती है, तो इसका असर केवल ऑनसाइट टेक वर्कर्स पर नहीं होगा, बल्कि किसी भी भारत आधारित निर्यातक पर पड़ेगा जो अमेरिका के साथ निर्बाध व्यापार पर निर्भर है। ” Oberoi ने कहा, “यह कदम सेवाओं पर टैरिफ लगाने के समान है। ” इस पूरी स्थिति में बाजार में अस्थिरता बनी रहेगी क्योंकि वीजा शुल्क बढ़ोतरी और व्यापार टैरिफ के चलते निवेशक जोखिम से बचने के मूड में हैं। Axis Asset Management के Nigam ने बताया, “ऐसी दोहरी अनिश्चितताओं – एक वीजा शुल्क में वृद्धि और दूसरा टैरिफ का खतरा – से बाजार में जोखिम लेने की भावना कमजोर होगी। ” इस तरह की नीति और भू-राजनीतिक घटनाओं ने भारतीय आर्थिक कहानी को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहां निवेशकों को अब सतर्क रहना होगा और भारत की ग्रोथ स्टोरी की प्रासंगिकता पर पुनर्विचार करना होगा