साल के तीसरे महीने लगातार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने भारतीय शेयर बाजार से भारी निकासी की है। सितंबर महीने में FPIs ने कुल ₹23,885 करोड़ की निकासी की, जिससे इस साल 7 अक्टूबर तक कुल आउटफ्लो ₹1.61 लाख करोड़ के पार पहुंच गया है। यह लगातार तीसरा महीना है जब FPIs ने भारतीय इक्विटी से पैसा निकाला है। National Securities Depository Ltd (NSDL) के आंकड़ों ने इस निरंतर बिकवाली की पुष्टि की है, जो कई कारणों से प्रेरित रही। सबसे बड़ा कारण भारतीय शेयरों का stretched valuation यानी अधिक मूल्यांकन है, जिसके चलते निवेशकों ने जोखिम कम करने की कोशिश की है। इसके अलावा, रुपये की कमजोर होती स्थिति, कमजोर आय वृद्धि और वैश्विक कारक जैसे कि अमेरिका के टैरिफ तनाव और H-1B वीजा शुल्क में वृद्धि ने भी FPIs के रुख को प्रभावित किया है। इसके चलते निवेशकों ने अपनी होल्डिंग्स को defensive sectors से कम किया, जबकि cyclical और आर्थिक रूप से संवेदनशील सेक्टर्स में selectively निवेश बढ़ाया। सेक्टर वार देखें तो automobile और auto components सेक्टर FPIs का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा। इस सेक्टर में ₹3,641 करोड़ की inflow हुई है। घरेलू मांग में मजबूती, GST दर में कटौती और त्योहारों की उम्मीदों ने इस निवेश को बढ़ावा दिया
इसके साथ ही capital goods सेक्टर में ₹3,010 करोड़ का निवेश आया, जो भारत की manufacturing नीति, सरकारी व निजी पूंजी व्यय में वृद्धि और बढ़ते ऑर्डर बुक्स का संकेत देता है। metals and mining सेक्टर में भी ₹1,840 करोड़ के निवेश देखे गए, जिसमें अधिकांश inflows महीने के पहले आधे में आए। financial services सेक्टर में FPIs ने सतर्क लेकिन सकारात्मक रुख दिखाते हुए ₹992 करोड़ का निवेश किया, जो ज्यादातर महीने की शुरुआत में हुआ। वहीं, defensive सेक्टर्स में भारी निकासी हुई। healthcare सेक्टर से ₹6,122 करोड़ की निकासी सबसे अधिक रही, जिसका कारण अमेरिका के व्यापार नीतियों को लेकर चिंताएं हैं। IT सेक्टर में भी ₹6,050 करोड़ का निवेश बाहर गया, मुख्य रूप से H-1B वीजा शुल्क में वृद्धि से जुड़ी अनिश्चितताओं के चलते। FMCG सेक्टर में ₹4,202 करोड़ की बिकवाली हुई। consumer durables और consumer services सेक्टर्स में भी क्रमशः ₹3,627 करोड़ और ₹3,360 करोड़ की निकासी दर्ज हुई। इसके अलावा power, telecom और realty सेक्टर्स से भी क्रमशः ₹2,693 करोड़, ₹2,422 करोड़ और ₹2,259 करोड़ की बिकवाली हुई। विशेषज्ञों के अनुसार यह बदलाव FPIs की एक रणनीतिक रोटेशन है, जिसमें वे defensive सेक्टर्स से बाहर निकलकर उन सेक्टर्स में निवेश कर रहे हैं जो आर्थिक वृद्धि से सीधे जुड़े हैं
Vipul Bhowar, Senior Director और Head of Equities at Waterfield Advisors ने कहा कि भले ही FPIs ने उच्च मूल्यांकन वाले सेक्टर्स में बिकवाली की है, वे अभी भी प्राइमरी मार्केट में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं ताकि संभावित विकास के अवसरों को पकड़ सकें। वहीं VK Vijayakumar, Chief Investment Strategist at Geojit Investments ने बताया कि FPIs की यह रणनीति कि वे सस्ते बाजारों में अपने पैसे लगाएं, फायदेमंद साबित हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के valuation gap के सिकुड़ने और FY27 में आय में सुधार की उम्मीद के कारण बिकवाली की गति आने वाले महीनों में धीमी होने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अनिश्चितताओं और भारतीय बाजार के stretched valuations के बीच सितंबर माह में FPIs की यह गतिविधि एक रणनीतिक बदलाव की ओर इशारा करती है। जहां IT, pharma और FMCG सेक्टर्स में बिकवाली जारी है, वहीं automobile, metals और capital goods सेक्टर्स में निवेशक विश्वास बरकरार रखते हुए निवेश बढ़ा रहे हैं। यह कदम भारत की आर्थिक विकास कहानी और घरेलू उपभोक्ता मांग में सुधार की उम्मीदों को दर्शाता है। कुल मिलाकर, FPIs का यह रुख भारतीय इक्विटी बाजार में निवेश के पैटर्न में बदलाव का संकेत है, जो आगामी महीनों में बाजार की दिशा को प्रभावित कर सकता है