Securities and Exchange Board of India (SEBI) शुक्रवार को अपना बोर्ड मीटिंग आयोजित करने जा रहा है, जिसमें कई अहम नियामक सुधारों पर चर्चा होगी। ये सुधार भारतीय शेयर बाजार में निवेश को सरल और आकर्षक बनाने के लिए हैं, जिनका उद्देश्य compliance को आसान बनाना और विदेशी निवेशकों के लिए प्रक्रिया को सुगम बनाना है। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में IPO नियमों में ढील, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के लिए नियमों में छूट, और low-risk विदेशी निवेशकों के लिए Single-Window framework जैसे प्रस्ताव शामिल हैं। इस बोर्ड मीटिंग में SEBI के चेयरमैन Tuhin Kanta Pandey के नेतृत्व में तीसरी बार बड़े बदलाव पर विचार किया जाएगा, जो मार्च 1 से इस पद पर कार्यरत हैं। प्रस्तावित सुधारों का मुख्य फोकस बड़े स्तर के कंपनियों के लिए IPO प्रक्रिया को आसान बनाना और compliance की जटिलताओं को कम करना है। सबसे बड़ी चर्चा IPO के नियमों में प्रस्तावित बदलावों को लेकर है। SEBI बड़े उद्यमों को भारत में लिस्टिंग के लिए प्रेरित करना चाहता है ताकि वे कम शुरुआती इक्विटी डिल्यूशन के साथ लिस्ट हो सकें। इसके तहत अलग-अलग मार्केट कैप के आधार पर कंपनियों के लिए न्यूनतम पब्लिक ऑफर (MPO) और न्यूनतम पब्लिक शेयर होल्डिंग (MPS) की अवधि में बदलाव किया जाएगा। 50,000 करोड़ से 1 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप वाली कंपनियों के लिए प्रस्ताव है कि MPO कम से कम ₹1,000 करोड़ या पोस्ट-इश्यू कैपिटल का 8% हो, जबकि MPS को पूरा करने का समय 3 साल से बढ़ाकर 5 साल कर दिया जाएगा। वहीं, 1 लाख करोड़ से 5 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप वाली कंपनियों के लिए MPO ₹6,250 करोड़ या पोस्ट-इश्यू कैपिटल का 2.75% निर्धारित किया जाएगा, और MPS को पूरा करने की अवधि 10 साल तक बढ़ाने का विकल्प दिया जाएगा, जो कि शेयर होल्डिंग के स्तर पर निर्भर करेगा
5 लाख करोड़ रुपये से ऊपर के मार्केट कैप वाली कंपनियों के लिए MPO ₹15,000 करोड़ या कम से कम 1% पोस्ट-इश्यू कैपिटल के बराबर होगा, और न्यूनतम डिल्यूशन 2.5% निर्धारित किया गया है। इस तरह से कंपनियां धीरे-धीरे अपनी पब्लिक शेयर होल्डिंग बढ़ा सकेंगी, जिससे शुरुआती वित्तीय दबाव कम होगा। इसके अलावा SEBI विदेशी निवेशकों के लिए compliance प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए SWAGAT-FI (Single Window Automatic & Generalised Access for Trusted Foreign Investors) नामक फेमवर्क को मंजूरी देने की योजना बना रहा है। इस प्रावधान के तहत low-risk विदेशी निवेशकों के लिए पंजीकरण और अनुपालन प्रक्रिया को एकीकृत किया जाएगा। इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत eligible निवेशकों में सरकारी फंड, सेंट्रल बैंक, sovereign wealth funds, multilateral संस्थान, highly regulated public retail funds, और उपयुक्त रूप से नियंत्रित insurance एवं pension funds शामिल हैं। इससे ये निवेशक भारत में निवेश के लिए आसानी से और तेज़ी से रजिस्ट्रेशन कर सकेंगे और नियमों का पालन कर पाएंगे, जिससे भारत में विदेशी निवेश आकर्षित होगा। बोर्ड मीटिंग में इसके अलावा Alternative Investment Funds (AIFs) के accredited investors के नियमों में छूट देने, rating agencies की गतिविधियों के दायरे का विस्तार करने, और REITs तथा InvITs को equity status प्रदान करने जैसे प्रस्ताव भी चर्चा के तहत आएंगे। ये कदम SEBI के व्यापक प्रयासों का हिस्सा हैं, जिनका मकसद नियामक परिदृश्य को और अधिक investor-friendly बनाना है। यदि ये प्रस्ताव बोर्ड से अनुमोदित हो जाते हैं, तो भारतीय इक्विटी बाजारों में विदेशी और घरेलू निवेश दोनों के लिए नई संभावनाएं खुलेंगी। बड़ी IPOs को बढ़ावा मिलेगा, जिससे कंपनियों को पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी और बाजार की गहराई बढ़ेगी
साथ ही, विदेशी निवेशकों के लिए सरल Single-Window प्रक्रिया से भारत में निवेश आकर्षक बनेगा, जिससे देश के आर्थिक विकास को नई ऊर्जा मिलेगी। SEBI की इस बैठक में लिए जाने वाले फैसले भारतीय शेयर बाजार के भविष्य को नई दिशा देने वाले साबित हो सकते हैं। नियामक सुधारों के माध्यम से compliance का बोझ कम होने, IPO प्रक्रिया में लचीलापन बढ़ने और विदेशी निवेशकों के लिए आसान पहुंच से बाजार में निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी और आर्थिक विकास में तेजी आएगी। इस तरह के बदलाव भारत के स्टॉक मार्केट को ग्लोबल निवेशकों के लिए और अधिक प्रतिस्पर्धी और आकर्षक बनाएंगे, जिससे देश की वित्तीय प्रणाली मजबूत और स्थिर होगी। SEBI की यह पहल भारतीय वित्तीय बाजारों के लिए एक नई शुरुआत का संकेत भी हो सकती है