Securities and Exchange Board of India (SEBI) की आगामी बोर्ड मीटिंग 12 सितंबर को होने वाली है, जिसमें बाजार नियामक कई अहम प्रस्तावों को मंजूरी दे सकता है। SEBI के अध्यक्ष Tuhin Kanta Pandey की अध्यक्षता में ये प्रस्ताव Ease of Doing Business यानी कारोबार में आसानी बढ़ाने के मकसद से तैयार किए गए हैं। सूत्रों की मानें तो ये प्रस्ताव शेयर बाजार की संरचना और निवेशकों के हितों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं और इनमें IPO, REITs, InvITs, Investment Advisors और अन्य कई क्षेत्रों में बड़े बदलाव शामिल हैं। सबसे बड़ा प्रस्ताव mega IPOs में stake dilution यानी हिस्सेदारी कम करने के नियमों में ढील देने का है। फिलहाल बड़ी कंपनियों को अपने IPO में न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS) को जल्दी पूरा करना होता है, लेकिन SEBI इसे धीरे-धीरे पूरा करने की अनुमति देना चाहता है। उदाहरण के लिए, जिन कंपनियों का पोस्ट-इश्यू मार्केट कैप 50,000 से 1,00,000 करोड़ रुपये के बीच है, उन्हें अब IPO में कम से कम 1,000 करोड़ रुपये का इश्यू करना होगा और MPS को पूरा करने के लिए 5 साल का समय मिलेगा। इससे बड़ी कंपनियों पर तुरंत दबाव कम होगा और वे नियमों का पालन धीरे-धीरे कर सकेंगी। इसी तरह, 1 लाख से 5 लाख करोड़ रुपये की कंपनियों के लिए भी नए नियम बनाए जाएंगे जिसमें 10 साल तक का समय मिलेगा। 5 लाख करोड़ रुपये से ऊपर की कंपनियों के लिए भी अलग मापदंड तय किए जाएंगे। IPO में anchor investor allocation के नियमों में भी बदलाव हो सकता है
अब IPOs के लिए anchor allottees की संख्या बढ़ाकर 30 की जा सकती है, खासकर उन IPOs में जिनका साइज 250 से 500 करोड़ रुपये के बीच है। इसके साथ ही mutual funds के साथ-साथ insurance companies और pension funds को भी anchor investors की श्रेणी में शामिल किया जाएगा, जिससे आरक्षित हिस्सा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। इससे बड़े निवेशकों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी और IPO प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी और आसान बनेगी। Related Party Transactions (RPTs) के लिए भी SEBI एक नया फ्रेमवर्क लाने जा रहा है, जो कंपनियों की टर्नओवर के हिसाब से compliance की जिम्मेदारी तय करेगा। छोटी और मझोली कंपनियों के लिए नियम आसान होंगे, जबकि बड़ी कंपनियों के लिए कुछ कड़े मानदंड लागू होंगे। इससे छोटे निवेशकों के हितों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। Credit Rating Agencies (CRAs) के कामकाज का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव भी चर्चा में है। अब ये एजेंसियां RBI, IRDAI, PFRDA, IFSCA, MCA और IBBI जैसे अन्य वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के अधीन आने वाले वित्तीय उपकरणों की रेटिंग भी कर सकेंगी, बशर्ते वे संबंधित नियमों का पालन करें। यह कदम regulated entities के लिए व्यवसाय के अवसर बढ़ाएगा। REITs और InvITs को अब equity classification देने की भी योजना है
वर्तमान में इन्हें debt और equity का मिश्रण माना जाता है, लेकिन equity का दर्जा मिलने से mutual funds इन्हें equity schemes में शामिल कर सकेंगे, जिससे रिटेल निवेशकों की पहुंच बढ़ेगी और इन परिसंपत्तियों में निवेश बढ़ेगा। Stock Broker Regulations में भी बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं। SEBI अब brokers के governance, client protection और compliance को और सख्त बनाना चाहता है। इसके तहत किसी भी नियंत्रण परिवर्तन के लिए SEBI की मंजूरी अनिवार्य होगी और algorithmic trading, proprietary trading के लिए नए परिभाषा-निर्देश बनाए जाएंगे। पुराने और अप्रासंगिक शब्द जैसे “small investor” को हटाया जाएगा और Qualified Stock Brokers (QSBs) के लिए नए मापदंड लागू होंगे। Registrar and Share Transfer Agent (RTA) के नियमों में भी संशोधन होगा ताकि ये सेवाएं listed और unlisted कंपनियों के लिए अलग-अलग हो सकें। RTAs को अपनी सेवाओं के लिए अलग-अलग इकाइयां बनानी होंगी और कम से कम 50 लाख रुपये का न्यूनतम नेट वर्थ बनाए रखना होगा। इससे सेवा की गुणवत्ता और पारदर्शिता बढ़ेगी। Market Infrastructure Institutions (MIIs) जैसे stock exchanges, clearing corporations और depositories की governance को मजबूत करने के लिए SEBI बोर्ड कम से कम दो Executive Directors (EDs) को नियुक्त करने पर विचार कर रहा है। MD के साथ मिलकर ये EDs risk management, compliance, और टेक्नोलॉजी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होंगे
हालांकि, इस प्रस्ताव पर कुछ आलोचना भी हो रही है क्योंकि इससे कई ताकतवर केंद्र बन सकते हैं। REITs और InvITs में strategic investors की परिभाषा भी व्यापक होगी। विदेशी निवेशकों और Qualified Institutional Buyers (QIBs) को इसमें शामिल करने का प्रस्ताव है, जिससे provident funds, pension funds और insurance funds को निवेश का मौका मिलेगा। इससे इस सेक्टर में पूंजी प्रवाह बढ़ेगा और निवेशकों का विश्वास मजबूत होगा। Alternative Investment Funds (AIF) के लिए Accredited Investor-only schemes को मंजूरी मिलने का प्रस्ताव भी है। इसके तहत ऐसे फंड्स को कम कड़े नियमों के तहत काम करने का अवसर मिलेगा जैसे कि scheme tenure बढ़ाना, NISM सर्टिफिकेशन की आवश्यकता खत्म करना, और निवेशकों की संख्या पर कोई सीमा न रखना। Large Value Funds (LVFs) के लिए भी minimum investment threshold घटाकर 25 करोड़ रुपये करने और ऑडिट से छूट देने की योजना है, जिससे AIF के विकास को बढ़ावा मिलेगा। Investment Advisors (IAs) और Research Analysts (RAs) के लिए नियम भी आसान किए जाएंगे। वे clients को past performance data दे सकेंगे, फीस चार्ज कर सकेंगे, और corporate entity में बदलने के लिए अधिक समय पाएंगे। रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया भी सरल होगी जिसमें address proof, infrastructure details, credit reports आदि की आवश्यकता घटेगी
अंत में, resident Indians को FPIs में भागीदारी आसान बनाने के लिए International Financial Services Centres (IFSCs) में स्थित Retail Schemes को FPI के रूप में रजिस्टर करने की अनुमति दी जाएगी। इससे भारतीय संस्थागत निवेशकों को वैश्विक निवेश में बढ़ावा मिलेगा। SEBI की ये पूरी पहल बाजार को अधिक निवेशक-अनुकूल, पारदर्शी और मजबूत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। Tuhin Kanta Pandey के नेतृत्व में यह बोर्ड मीटिंग भारतीय पूंजी बाजार के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। हालांकि, SEBI की ओर से अभी तक इन प्रस्तावों पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये बदलाव बाजार को किस दिशा में ले जाते हैं और निवेशकों को कितना लाभ पहुंचाते हैं