Securities and Exchange Board of India (Sebi) ने हाल ही में स्टॉक एक्सचेंजों के संचालन और Investor Protection Fund (IPF) से जुड़ी नियमावली में कई अहम बदलावों का प्रस्ताव रखा है, जो भारतीय शेयर बाज़ार के लिए एक बड़ी क्रांतिकारी पहल साबित हो सकती है। Sebi के इन प्रस्तावों का मकसद मुख्य रूप से एक्सचेंजों के लिए Ease of Doing Business को बढ़ावा देना और निवेशकों की सुरक्षा को और भी सुदृढ़ बनाना है। Sebi ने IPF के दावों पर तीन साल की सीमा तय करने का प्रस्ताव दिया है। इसका मतलब यह है कि अब केवल वह ट्रांजैक्शन ही IPF के दावों के लिए मान्य होंगे, जो किसी सदस्य के डिफॉल्टर घोषित होने की तारीख से तीन साल के भीतर हुए हों। इससे पुराने और बार-बार दायर किए जाने वाले दावों पर रोक लगेगी और IPF के दावों की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और त्वरित होगी। इस संबंध में MSECC के नियमों में भी संशोधन का प्रस्ताव है, ताकि केवल वही दावे स्वीकार किए जाएं जिनका आधार तीन साल के भीतर की ट्रेडिंग हो। एक और बड़ा बदलाव Sebi ने यह सुझाया है कि equity और commodity segments के IPF को मर्ज किया जाए। इसका उद्देश्य दोनों सेगमेंट के लिए एक ही IPF को बनाए रखना है, जिससे योगदान, उपयोग, निवेश और गवर्नेंस की प्रक्रियाएं सिंक्रनाइज़ हो सकें। हालांकि, commodity-derivative एक्सचेंजों के लिए समान धनराशि बनाए रखने की शर्त रखी गई है ताकि उनके विशेष आवश्यकताओं की रक्षा हो सके। इस बदलाव से एक्सचेंजों की कार्यप्रणाली सरल होगी, लेकिन Sebi ने इस प्रस्ताव पर Secondary Market Advisory Committee से राय भी मांगी है
Sebi ने NSE के IPF के ब्याज उपयोग पर लगी पाबंदी को हटाने का भी प्रस्ताव रखा है। 2020 में NSE को यह शर्त दी गई थी कि वह अपने IPF के ब्याज का पूरा उपयोग केवल निवेशकों के दावों के लिए करे। अब Sebi ने इस प्रतिबंध को खत्म कर दिया है ताकि सभी एक्सचेंजों के बीच समानता कायम हो सके। Sebi के अनुसार, इस फैसले से IPF की उपयोगिता बढ़ेगी और बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बेहतर होगी। Exclusively listed companies (ELCs) के लिए भी Sebi ने कड़े कदम उठाने का प्रस्ताव रखा है। ऐसे कंपनियों को Dissemination Board (DB) पर आने के बाद तीन महीने के भीतर अपने action plan को संबंधित एक्सचेंज को सौंपना होगा। वर्तमान में इस प्रक्रिया के लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं थी, जिससे ELCs को ढिलाई करने का मौका मिलता था और शेयरहोल्डर्स के लिए अनिश्चितता बनी रहती थी। साथ ही, एक्सचेंज को यह सुनिश्चित करना होगा कि action plan को छह महीने के भीतर पूरा किया जाए। ELCs के प्रमोटर्स और डायरेक्टर्स की जिम्मेदारी भी बढ़ाई जाएगी। अब यदि वे निर्धारित समय सीमा के भीतर exit options प्रदान करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें सीधे तौर पर जिम्मेदार माना जाएगा
पहले यह मानक काफी अस्पष्ट था, जिसमें केवल ‘पर्याप्त प्रयासों का प्रदर्शन’ करने की बात कही जाती थी। यह कदम ELCs में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाएगा। Sebi ने एक्सचेंजों के लिए न्यूनतम वार्षिक ट्रेडिंग टर्नओवर की सीमा को भी संशोधित करने का प्रस्ताव रखा है। फिलहाल यह सीमा ₹1,000 करोड़ निर्धारित है, जो 2012 में तय की गई थी। अब Sebi ने इसे इस शब्द के साथ बदला है कि ₹1,000 करोड़ या Sebi द्वारा निर्धारित कोई उच्चतर राशि भी हो सकती है। इससे भविष्य में बाजार की स्थिति के अनुसार इस सीमा को बढ़ाना संभव होगा। Public Interest Directors (PIDs) के नियमों में भी महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तावित हैं। अब PIDs को हर मीटिंग में उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं होगा, बल्कि उन्हें कम से कम साल में दो मीटिंग्स में भाग लेना होगा और अन्य मीटिंग्स में भी उपस्थित रहने का प्रयास करना होगा। इससे वास्तविक कारणों के चलते PIDs की अनुपस्थिति को स्वीकार किया जा सकेगा। इसके अलावा, PIDs को विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि वे एक-दूसरे को अपडेट देंगे और मीटिंग के परिणाम एक्सचेंज बोर्ड को 30 दिनों के भीतर सौंपेंगे
केवल महत्वपूर्ण मामलों में ही Sebi को रिपोर्ट भेजना होगा। Conflict Resolution Committee (CRC) के गठन को भी Sebi ने लचीला बनाने का प्रस्ताव दिया है। अब CRC स्थायी समिति के बजाय आवश्यकता अनुसार अस्थायी समिति के रूप में बनाई जाएगी, जो कि उन मामलों में गठित होगी जहां listing और listed एक्सचेंजों के बीच विवाद उत्पन्न हो। Sebi ने कहा है कि अब तक ऐसा कोई विवाद नहीं हुआ है, इसलिए ad hoc समिति अधिक व्यावहारिक और कारगर साबित होगी। इसके अलावा, Sebi ने एक्सचेंजों के आंतरिक समितियों को अधिक अधिकार देने का सुझाव दिया है ताकि मानकीकृत दंडों को लागू करना आसान हो सके। सदस्य कमिटी की मंजूरी के बिना भी एक्सचेंज के आंतरिक विभाग प्रमुख या समिति ऐसे दंड लगा सकेंगे और इसकी तिमाही रिपोर्ट सदस्य कमिटी को देंगे। Sebi ने एक और महत्वपूर्ण बदलाव के तहत उन शेयरधारकों के बारे में तैयार होने वाली असाधारण तिमाही रिपोर्ट को Sebi के बजाय Regulatory Oversight Committee (ROC) को सौंपने का प्रस्ताव दिया है। इससे अनुपालन का बोझ कम होगा क्योंकि वही जानकारी पहले से निरीक्षण और निगरानी में शामिल होती है। अंत में, Sebi ने governance-based contribution के प्रावधान को हटाने का भी प्रस्ताव दिया है, जो कि de-recognised एक्सचेंजों की संपत्ति से निवेशक सुरक्षा के लिए योगदान निर्धारित करता है। Sebi के अनुसार यह प्रावधान अनावश्यक दोहराव है और बाजार की कार्यक्षमता के लिए बाधक बनता है
Sebi ने इन सभी प्रस्तावों पर जनता से 29 अक्टूबर 2025 तक अपनी प्रतिक्रिया मांगी है। ये बदलाव भारतीय शेयर बाजार के संचालन में पारदर्शिता, जवाबदेही और सहजता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। यदि ये प्रस्ताव लागू होते हैं, तो एक्सचेंजों और निवेशकों दोनों के लिए काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है