भारत के शेयर बाजार में अब ताकत का संतुलन पूरी तरह बदल चुका है। The Wealth Formula के Diwali स्पेशल राउंडटेबल में जब N Mahalakshmi ने देश के टॉप प्राइवेट बैंकर्स से बात की, तो सामने आया कि Foreign Flows अब केवल कभी-कभार होते हैं, जबकि Domestic Investors लगातार लिक्विडिटी प्रदान कर बाजार को मजबूत बनाए हुए हैं। यह लिक्विडिटी म्यूचुअल फंड्स, PMS और Alternate Assets में Systematic Inflows के माध्यम से आ रही है। Anand Rathi Wealth के Deputy CEO Feroz Azeez ने बताया कि पिछले चार सालों में Domestic Institutions ने Equities में लगभग Rs 15.5 लाख करोड़ का निवेश किया है, जो पिछले आठ वर्षों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर बाजार में 10-20 फीसदी की Correction भी आती है, तब भी Local Investors की मांग सप्लाई से कहीं ज्यादा है। यह बदलाव वाकई चौंकाने वाला है। Azeez का अनुमान है कि अगले दो वर्षों में मासिक SIP फ्लो Rs 48,000 करोड़ तक पहुंच सकता है, और इस तरह दशक के अंत तक Domestic Inflows Rs 54 लाख करोड़ से ऊपर हो जाएंगे। लेकिन एक बात जस की तस बनी हुई है, वह है निवेशकों का व्यवहार। Azeez ने कहा कि जैसे-जैसे निवेश का मूल्य बढ़ता है, Recency Bias यानी हालिया अनुभवों पर आधारित निर्णय और भी मजबूत हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि Smart Money हमेशा स्मार्ट नहीं होती, बल्कि कभी-कभी Retail Portfolios भी Rs 100 करोड़ से अधिक के Portfolios से बेहतर Risk-Adjusted Returns दे सकते हैं
वह कहते हैं कि समस्या नए प्रोडक्ट या थीम की नहीं, बल्कि Asset Allocation की है। उदाहरण के तौर पर, एक Portfolio जिसमें 70 प्रतिशत Debt और 30 प्रतिशत Equity हो, वह 34:66 के मिक्स वाले Portfolio से कम प्रदर्शन कर सकता है। उनकी राय में यह समस्या Analytical नहीं, बल्कि Behavioral है। यह Behavioral Gap तब सामने आ रहा है जब Post-Tax Returns की वजह से पैसे Debt से Riskier Assets की ओर बढ़ रहे हैं। 360 One Wealth के Co-founder और CEO Yatin Shah के अनुसार, Fixed Income अब केवल एक Safety Pool बनकर रह गया है, न कि एक तयशुदा Allocation। इसी ट्रेंड को Julius Baer के CEO Umang Papneja ने भी अलग नजरिए से देखा। उन्होंने बताया कि नए HNI (High Net-worth Individuals) Allocation Debt से कम कर Equity में बढ़ा रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि Risk Appetite ज्यादा हुआ है, बल्कि निवेशक यह समझ रहे हैं कि Underinvested रहना भी एक Risk है। नियामक (Regulation) भी इस बदलाव की दिशा को प्रभावित कर रहे हैं। Mutual Funds के तहत Special Investment Fund (SIF) framework, जो AIF जैसी Flexibility और बेहतर Transparency देता है, Alternate Asset Management को पूरी तरह बदलने वाला है
ASK Wealth के CEO और MD Rajesh Saluja का मानना है कि यह Pie (बाजार) बड़ा करेगा। वे कहते हैं कि कई Fund Managers अपनी AIF Strategies को Mutual Fund License के तहत ले जा सकते हैं क्योंकि यह एक Cleaner Structure होगा। Real Estate भी अब एक नई दिशा में लौट रहा है, लेकिन पुराने रूप में नहीं। Saluja के अनुसार, Developer End पर मिलने वाला IRR सीधे Properties खरीदने से कहीं अधिक है। Tax Driven Reinvestment Cycle जो पहले Section 54 और 54F के तहत थी और Rs 10 करोड़ पर Cap लग गया है, अब खत्म हो चुका है। Anand Rathi Wealth के Feroz Azeez ने बताया कि Real Estate अब ज्यादा Transparent और Structured होता जा रहा है, लेकिन Tax Efficiency कम हो गई है। यह सब मिलकर एक बिल्कुल नया Wealth Ecosystem बना रहा है – जो पूरी तरह Domestic, Tax-Aware और Product-Diversified है, लेकिन अभी भी Emotional Impulses को पार करने की प्रक्रिया में है। बाजार में पैसा तो Mature हो गया है, लेकिन निवेशकों का Temperament अभी भी वैसा का वैसा है। Azeez ने स्पष्ट किया कि अगर कोई FD से तीन गुना रिटर्न चाहता है, तो उसे कुछ सालों की Market Pressure को झेलने के लिए तैयार होना होगा, नहीं तो वह Equity के लिए तैयार नहीं है। इस समांतर विकास में एक बात साफ नजर आती है कि भारत के शेयर बाजार में अब घरेलू निवेशकों का दबदबा है और वे बाजार की लिक्विडिटी और स्थिरता के लिए मुख्य आधार बन चुके हैं
Foreign Investors के Episodic होने के बावजूद, Domestic Investors की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और Systematic Investment Plans की मजबूती से बाजार में एक नया संतुलन बन रहा है। यह बदलाव भारतीय निवेश परिदृश्य के लिए एक बड़ा और स्थायी बदलाव साबित हो सकता है