देश की अर्थव्यवस्था में निवेश (Capex) से उपभोग (Consumption) की ओर हो रहे बदलाव ने विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। Buoyant Capital के Jigar Mistry ने हाल ही में एक बातचीत में इस बदलाव के जोखिमों को उजागर किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों द्वारा चुनावी वादों और सामाजिक कल्याण योजनाओं को प्राथमिकता देने से पूंजीगत व्यय (Capex) पर असर पड़ रहा है, जो दीर्घकालिक विकास के लिए जरूरी है। मistry ने बिहार चुनावों का उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ नेता रोजगार और लाभों के वादे कर रहे हैं जो असल में पूरी तरह संभव नहीं हैं। बिहार में लगभग दो करोड़ परिवार हैं, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त सरकारी नौकरियों की संख्या सात करोड़ से भी कम है। यानी रोजगार के जो वादे किए जा रहे हैं, वे वास्तविकता से कई गुना अधिक हैं। यह सिर्फ बिहार की समस्या नहीं है, बल्कि हाल ही में चुनाव हुए 16 राज्यों के विश्लेषण से पता चलता है कि सामाजिक कल्याण के लिए किए गए वादे बजट आवंटन से अधिक हैं और अक्सर Capex के लिए निधि कम कर दी जाती है। Jigar Mistry ने बताया कि सरकार द्वारा Capex पर खर्च की गई हर एक रुपये की राशि GDP पर लगभग 2.5 गुना अधिक प्रभाव डालती है, जबकि राजस्व व्यय या ट्रांसफर पर खर्च का असर तुलनात्मक रूप से कम होता है। लेकिन अगर GDP के 1.5% हिस्से को Capex से उपभोग पर स्थानांतरित किया जाता है, तो इससे लगभग 2.5% संभावित GDP का नुकसान हो सकता है, जो अगले तीन वर्षों में 75 बेसिस पॉइंट की गिरावट के बराबर होगा। यह संकेत देता है कि निवेश की तुलना में उपभोग पर अधिक जोर देने से आर्थिक वृद्धि की गति धीमी पड़ सकती है
Mistry ने यह भी कहा कि निवेश-आधारित विकास से उपभोग-आधारित विकास की ओर संक्रमण असानी से नहीं होता। चीन को भी इस परिवर्तन में लंबा संघर्ष करना पड़ा है। अतिरिक्त आय मिलने पर लोग उसे बचा सकते हैं, खर्च कर सकते हैं या छुपा भी सकते हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों पर इसका प्रभाव अनिश्चित रहता है और परिणाम सामने आने में समय लगता है। राज्य सरकारों ने चुनावी जीत के लिए सामाजिक कल्याण योजनाओं पर जोर देना शुरू कर दिया है, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स प्रभावित हो रहे हैं। यह नीति परिवर्तन तत्काल राहत तो दे सकता है लेकिन दीर्घकालिक विकास के लिए चुनौतियां पैदा करता है। Capex में कमी से बुनियादी ढांचे का विकास धीमा होगा, जो रोजगार सृजन और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक है। विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक नीति में संतुलन बनाए रखना जरूरी है। निवेश और उपभोग के बीच उचित संतुलन हो ताकि वर्तमान जरूरतों को पूरा करते हुए भविष्य की विकास क्षमता भी बरकरार रहे। यदि राज्य सरकार केवल चुनावी वादों के लिए खर्च बढ़ाती हैं, तो इससे अर्थव्यवस्था की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। Jigar Mistry ने इस बात पर भी जोर दिया कि नीति निर्धारकों को इस बदलाव की समयसीमा और प्रभावों को समझना होगा
उपभोग बढ़ाने से आर्थिक गति तुरंत बढ़ सकती है, लेकिन इसका स्थायी प्रभाव तभी होगा जब उपभोग के साथ निवेश की भी पर्याप्त मात्रा रहे। वर्तमान में भारत की आर्थिक स्थिति को लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि Capex में कटौती से GDP की संभावित वृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ेगा। निवेश की कमी से उत्पादन, रोजगार और तकनीकी विकास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, राज्य सरकारों को चाहिए कि वे चुनावी वादों और सामाजिक योजनाओं को वास्तविक बजट क्षमता के अनुसार सीमित रखें और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर ध्यान केंद्रित करें। इससे न केवल आर्थिक विकास की गति बनी रहेगी, बल्कि रोजगार के स्थायी अवसर भी पैदा होंगे। देश की आर्थिक प्रगति के लिए जरूरी है कि Capex को कम न करके उसे बढ़ावा दिया जाए, ताकि निवेश-आधारित विकास मॉडल को मजबूत किया जा सके। उपभोग पर अधिक ध्यान देने से सतत विकास के रास्ते में बाधाएं आ सकती हैं, जो लंबे समय तक देश की समृद्धि को प्रभावित कर सकती हैं। इस समय यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगामी नीतिगत फैसलों में किस तरह का संतुलन स्थापित किया जाता है और क्या सरकारें निवेश और उपभोग के बीच सही तालमेल बना पाती हैं