Securities and Exchange Board of India (SEBI) ने PTC India Ltd के पूर्व Chairman और Managing Director Dr. Rajib Kumar Mishra को जारी किया गया show cause notice बिना किसी निर्देश या सजा के निपटा दिया है। SEBI की जांच में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि Mishra अकेले कंपनी के corporate governance में आई खामियों के लिए जिम्मेदार हैं। यह मामला तब सामने आया था जब दिसंबर 2022 में कंपनी के चार independent directors ने इस्तीफा दिया था और उनके resignation letters में governance को लेकर कई गंभीर चिंताएं जताई गई थीं। इन resignations के अलावा shareholders की शिकायतें और मीडिया रिपोर्ट्स ने भी SEBI को इस मामले की जांच के लिए प्रेरित किया था। जनवरी 2025 में SEBI ने Mishra को show cause notice जारी किया था जिसमें उन पर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने directors की चिंताओं पर उचित चर्चा नहीं की, Nomination and Remuneration Committee को प्रभावित किया, CMD की नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितताएं कीं और shareholders की शिकायतों की अनदेखी की। इसके अलावा SEBI ने Mishra के tenure के दौरान कंपनी के legal expenses पर भी सवाल उठाए, जिसमें 55 लाख रुपये से अधिक की राशि शामिल थी। साथ ही, SEBI ने इस बात पर भी संदेह जताया कि Mishra ने जून 2024 में SEBI के प्रतिबंध के बावजूद कंपनी के ऑफिस कंप्यूटर का इस्तेमाल जारी रखा। लेकिन SEBI की जांच में यह साफ हुआ कि corporate governance की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति पर नहीं डाली जा सकती क्योंकि बोर्ड की सभी महत्वपूर्ण निर्णय सामूहिक रूप से होते हैं। बोर्ड के निर्णयों में सरकार और public sector के nominees भी शामिल होते हैं। SEBI ने यह भी बताया कि CMD की भूमिका के लिए जो eligibility criteria थे, वे Mishra ने अकेले तय नहीं किए थे बल्कि NRC ने अक्टूबर 2022 में उसे मंजूरी दी थी और पूरे बोर्ड ने नवंबर 2022 में उसे ratify किया था
जहां तक CMD की नियुक्ति को rushed बताने वाले आरोप हैं, SEBI ने इसे भी आधारहीन बताया क्योंकि पुराने CMD appointments भी उसी दिन recommendation और approval प्रक्रिया के तहत हुए थे। independent directors के resignation letters को बोर्ड ने दिसंबर 2022 में formal रूप से नोट किया और उस पर चर्चा भी की गई। legal expenses को लेकर भी SEBI ने स्पष्ट किया कि PTC India के बोर्ड ने दिसंबर 2024 में Mishra से किसी भी recovery का आदेश नहीं दिया, जिससे यह साबित होता है कि यह खर्च कंपनी की delegation of powers के अंतर्गत था। कंपनी ने पुराने assets के buyback को भी बोर्ड की मंजूरी से किया था, जिसमें desktop भी शामिल था, और retirement dues भी पूरी तरह से Mishra को जारी किए गए थे। SEBI ने यह भी इस बात पर जोर दिया कि Mishra जून 2024 में सेवानिवृत्त हो चुके थे और उनके पास कंपनी के records तक पहुंच नहीं थी। SEBI ने कहा कि सेवानिवृत्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करते समय सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर उन फैसलों के लिए जो बोर्ड के सामूहिक निर्णय थे। SEBI ने यह भी कहा कि सही कार्रवाई के नाम पर किसी भी तरह का harassment नहीं होना चाहिए। SEBI के quasi-judicial अधिकारी Santosh Shukla ने 69 पेज के order में लिखा कि बिना सटीक और मजबूत सबूत के individual को corporate governance के उल्लंघन के लिए दोषी ठहराना न केवल अनुचित है बल्कि इससे व्यवस्था की गंभीरता पर भी सवाल उठते हैं। उन्होंने Professor Jeremy Waldron के विचार का हवाला देते हुए कहा कि कानून के नाम पर जबरदस्त दुरुपयोग से फायदा नहीं होगा, बल्कि इससे मामला कमजोर पड़ जाएगा। अंततः SEBI ने यह निष्कर्ष निकाला कि show cause notice में लगाए गए आरोप साबित नहीं हुए हैं और इसलिए SEBI Act, 1992 की sections 11(1), 11(4), 11(4A) और 11B के तहत कोई enforcement action जरूरी नहीं है
इस कारण SEBI ने show cause notice को बिना किसी निर्देश के बंद कर दिया। यह फैसला PTC India Ltd की corporate governance के मामले में एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है, जो यह बताता है कि regulator भी व्यक्तिगत रूप से किसी एक अधिकारी को दोषी ठहराने से पहले पूरी जांच और साक्ष्यों पर भरोसा करता है। साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि बोर्ड के सामूहिक निर्णयों की प्रकृति को समझना और उसका सम्मान करना आवश्यक है। इस पूरे मामले ने यह भी एक बार फिर corporate governance के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है, जहां transparency, जिम्मेदारी और सामूहिक निर्णय की भूमिका अहम होती है। SEBI का यह निर्णय पुराने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में सावधानी बरतने की भी सीख देता है ताकि कोई भी निष्पक्ष और न्यायसंगत प्रक्रिया के तहत अपनी जिम्मेदारी निभा सके