भारत के अमेरिका को निर्यात में अब तेज़ गिरावट देखने को मिल रही है, खासकर तब से जब सितंबर महीने में पूरी तरह से 50% टैरिफ लागू हो गया है। यह टैरिफ अमेरिकी प्रशासन ने प्रमुख उत्पादों पर लगाया है, जिसे लेकर अब निर्यातक और नीति निर्धारकों में चिंता बढ़ गई है। Global Trade Research Initiative (GTRI) की रिपोर्ट के मुताबिक, यह असर सिर्फ टैरिफ वाले उत्पादों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि अब गैर-टैरिफ वाले उत्पादों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अगस्त के आंकड़े टैरिफ बढ़ोतरी का पूरा असर नहीं दिखा पाए क्योंकि टैरिफ को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया गया था—पहले 10% अगस्त 6 तक, फिर 25% अगस्त 27 तक, और अंत में 50% अगस्त 28 के बाद। सितंबर पहला महीना था जब पूरी तरह 50% टैरिफ लागू हुआ, इसलिए टेक्सटाइल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, श्रिम्प, केमिकल्स और सोलर पैनल जैसे सेक्टर्स में निर्यात गिरावट और तेज होने की संभावना है। आंकड़ों पर नजर डालें तो अगस्त 2025 में भारत का अमेरिका को निर्यात लगभग 14% कम होकर 6.86 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो कि टैरिफ बढ़ोतरी के बाद का सीधा नतीजा है। Category C के निर्यात, जो भारत के अमेरिका निर्यात का 62.7% हिस्सा हैं, मई में 4.82 बिलियन डॉलर से गिरकर अगस्त में 4.30 बिलियन डॉलर तक आ गए। इस श्रेणी में मुख्यतः मजदूर-आधारित सेक्टर आते हैं, जो टैरिफ बढ़ने से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि टैरिफ से मुक्त उत्पादों का निर्यात भी गिरा है। उदाहरण के लिए, स्मार्टफोन और फार्मास्यूटिकल्स जो भारत के PLI (Production Linked Incentive) प्रोग्राम के तहत आते हैं, इनका निर्यात अगस्त में 41.9% तक घट गया
मई में ये 3.37 बिलियन डॉलर थे जो अगस्त में सिर्फ 1.96 बिलियन डॉलर रह गए। विशेषज्ञों का मानना है कि इस गिरावट की एक वजह ‘फ्रंटलोडिंग’ है, यानी कंपनियों ने टैरिफ बढ़ने से पहले ज्यादा माल भेजा, जिससे बाद में मांग कम हो गई। निर्यातक और उद्योग संघ सरकार से त्वरित कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि Interest Equalisation Scheme के तहत ब्याज सब्सिडी, तेजी से Duty Remission, और तरलता सहायता से प्रभावित कंपनियों का बोझ कम किया जा सकता है। जबकि हाल ही में GST दरों में कटौती से घरेलू मांग को बढ़ावा मिला है, पर निर्यात के लिए खास तौर पर कोई राहत अभी तक नहीं मिली है। नीति के लिहाज से, भारत और अमेरिका के बीच चल रही बातचीत में भारत कड़ी रुख अपनाने वाला है, खासकर कृषि, डेयरी, जीन संशोधित फीड और नियामक संप्रभुता जैसे संवेदनशील मुद्दों पर। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में घरेलू हितों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार दबाव के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी होगा। कुल मिलाकर, भारत के अमेरिका को निर्यात में यह मंदी टैरिफ के बढ़ने और टैरिफ मुक्त श्रेणियों के अप्रत्याशित संकुचन का परिणाम है। सितंबर में जब 50% टैरिफ का पूरा असर सामने आएगा तब यह स्थिति और गंभीर हो सकती है। ऐसे में समय पर नीति हस्तक्षेप और लक्षित राहत उपाय भारत के निर्यात क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने और विकास को जारी रखने के लिए अनिवार्य हैं