Securities and Exchange Board of India (SEBI) ने देश के infrastructure projects के फंडिंग में institutional और retail investors की भागीदारी बढ़ाने की जोरदार मांग की है। SEBI Chairman Tuhin Kanta Pandey ने बताया कि भारत की infrastructure financing फिलहाल सीमित निवेशकों के ही हाथों में केंद्रित है, जिससे liquidity और long-term stability पर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए investor base को diversify करना बेहद जरूरी है। Tuhin Kanta Pandey ने NaBFID Annual Infrastructure Conclave के दौरान कहा कि mutual funds, pension funds और retail investors को infrastructure securities में अधिक भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अब तक कुछ बड़े institutional players के ही प्रभुत्व के कारण secondary market की activity सीमित रही है, जिससे trading depth और liquidity कमजोर बनी हुई है। इस वजह से infrastructure bonds और अन्य उपकरणों की secondary market में उतनी तेजी नहीं आ पाई है जितनी होनी चाहिए थी। SEBI चेयरमैन ने asset monetisation को तेज करने की भी बात कही। उन्होंने roads, railways, ports, airports, energy, petroleum, gas और logistics जैसे कई सेक्टर्स में asset monetisation को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया। जबकि केंद्र सरकार ने अपनी monetisation pipeline को आगे बढ़ा दिया है, राज्य सरकारें अभी भी अपने योजनाओं को अंतिम रूप दे रही हैं। इस संदर्भ में उन्होंने Infrastructure Investment Trusts (InvITs), Real Estate Investment Trusts (REITs), securitisation और public-private partnerships (PPPs) को फंड जुटाने के प्रभावी साधन बताया
पिछले पांच वर्षों में SEBI के तहत रजिस्टर्ड 23 InvITs और 5 REITs ने लगभग ₹1.5 लाख करोड़ की राशि जुटाई है, और इनके combined assets under management FY25 के अंत तक ₹8.7 लाख करोड़ तक पहुंच गए हैं। इसके अलावा, infrastructure-focused Category-I Alternative Investment Funds (AIFs) ने जून 2025 तक ₹7,500 करोड़ से अधिक का निवेश किया है। यह आंकड़े इस क्षेत्र में निवेश की बढ़ती रुचि और संभावनाओं को दर्शाते हैं। Municipal bonds की भूमिका पर भी Pandey ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि infrastructure financing को diversify करने में municipal bonds महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 2017 से अब तक 21 bonds जारी किए गए हैं, जिनसे करीब ₹3,134 करोड़ जुटाए गए हैं। हालांकि, इस क्षेत्र में प्रगति धीमी रही है क्योंकि urban local bodies की financial स्थिति कमजोर है, regulatory approvals में देरी होती है और governance को लेकर चिंताएं बनी रहती हैं। Pandey ने स्पष्ट किया कि बैंकों और सरकारी बजट पर अत्यधिक निर्भरता से concentration risks बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि corporate bonds, InvITs, REITs और municipal bonds जैसे capital market instruments का विस्तार करना चाहिए ताकि financing का बोझ बराबर बंट सके और long-term investor confidence को बढ़ावा मिले। यह कदम infrastructure development की sustainability और वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक है
Pandey ने कहा कि भारत के infrastructure सेक्टर को आर्थिक विकास और विकास के लक्ष्यों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए विशाल और स्थायी पूंजी की जरूरत है। SEBI द्वारा institutional और retail investors की भागीदारी बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम liquidity सुधारने, बैंकों पर निर्भरता कम करने और secondary markets को मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि diversified funding ecosystem ही asset monetisation को सफल बनाने और पूरे देश में infrastructure development को सतत गति देने में अहम भूमिका निभाएगा। इससे न केवल निवेशकों को बेहतर अवसर मिलेंगे बल्कि अर्थव्यवस्था को भी मजबूत आधार मिलेगा। इस प्रकार SEBI ने infrastructure financing के क्षेत्र में व्यापक निवेशकों को शामिल करने की जो पहल शुरू की है वह भारत के भविष्य के विकास और आर्थिक स्थिरता के लिए एक नया रास्ता खोलती है। निवेशकों की भागीदारी बढ़ने से infrastructure projects को लंबी अवधि के लिए मजबूत वित्तीय समर्थन मिल सकेगा, जो देश की विकास यात्रा को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा