SEBI ने भारतीय शेयर बाजार में बड़ी कंपनियों के लिए IPO से जुड़ी नियमावली में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जो न केवल फंडरेजिंग प्रक्रिया को सरल बनाएंगे बल्कि निवेशकों के लिए भी अधिक अवसर पैदा करेंगे। हाल ही में 12 सितंबर को हुई SEBI बोर्ड की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए, जिनका मकसद बड़ी कंपनियों के लिए IPO में पारदर्शिता बढ़ाना और बाजार को स्थिर बनाना है। सबसे बड़ा बदलाव Minimum Public Offer (MPO) या न्यूनतम सार्वजनिक प्रस्ताव में आया है। अब उन कंपनियों के लिए जिनका मार्केट कैप Rs 1 लाख करोड़ से Rs 5 लाख करोड़ के बीच है, न्यूनतम सार्वजनिक प्रस्ताव Rs 6,250 करोड़ या पोस्ट-इशू मार्केट कैप का 2.75% होगा। यह नया नियम IPO के बाद कंपनी के बाजार मूल्य के अनुसार तय होगा। SEBI ने बताया कि यह कदम बड़े IPOs को बाजार में बेहतर तरीके से एडजस्ट करने में मदद करेगा, जिससे निवेशकों को अधिक विकल्प मिलेंगे। इसके अलावा, जिन कंपनियों का मार्केट कैप Rs 5 लाख करोड़ से ऊपर है, उनके लिए न्यूनतम सार्वजनिक प्रस्ताव Rs 15,000 करोड़ प्लस पोस्ट-इशू मार्केट कैप का 1% होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि बहुत बड़ी कंपनियां भी पर्याप्त हिस्सेदारी सार्वजनिक रूप से बेचें, जिससे बाजार में उनकी हिस्सेदारी की पहुंच बनी रहे। SEBI ने IPO के लिए न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी (Minimum Public Shareholding – MPS) के नियमों में भी राहत दी है। जिन कंपनियों का मार्केट कैप Rs 50,000 करोड़ से Rs 1 लाख करोड़ के बीच है, उनके लिए MPS पूरा करने का समय बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया है, जबकि पहले यह अवधि 3 साल थी
वहीं, जिन कंपनियों का पोस्ट-लिस्टिंग मार्केट कैप Rs 1 लाख करोड़ से अधिक है, उन्हें MPS पूरा करने के लिए 10 साल तक का समय दिया जाएगा। यह बदलाव बड़ी कंपनियों को नियमों का पालन करने के लिए अधिक लचीलापन देगा। SEBI ने IPO के लिए एक नई श्रेणी भी बनाई है, जिसमें Rs 4,000 करोड़ से लेकर Rs 50,000 करोड़ तक की कंपनियां शामिल हैं। इसके तहत इन कंपनियों के लिए न्यूनतम सार्वजनिक प्रस्ताव के नियम भी बाजार कैप के अनुसार तय किए जाएंगे। SEBI अध्यक्ष Tuhin Kanta Pandey ने बताया कि यह चार अतिरिक्त थ्रेशोल्ड बनाए गए हैं, जो IPO प्रक्रिया को ज्यादा स्केल-बेस्ड और बाजार की जरूरतों के अनुरूप बनाएंगे। इसके अलावा, SEBI ने संबंधित पक्ष लेनदेन (Related Party Transactions) के नियमों में भी सुधार किए हैं। अब कम मूल्य के लेनदेन के लिए सरल प्रकटीकरण की अनुमति दी गई है, जिससे कंपनियों की कॉर्पोरेट गवर्नेंस बेहतर होगी और अनुपालन की प्रक्रिया आसान होगी। विदेशी निवेशकों के लिए भी SEBI ने एक बड़ा कदम उठाया है। बोर्ड ने एक सिंगल विंडो एक्सेस की मंजूरी दी है, जिससे कम जोखिम वाले विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय सिक्योरिटीज मार्केट में निवेश करना सरल होगा। इससे भारत को वैश्विक निवेशकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाया जाएगा
IPO में एंकर निवेशकों के लिए शेयर आवंटन प्रणाली को भी पुनर्गठित किया गया है, ताकि संस्थागत निवेशकों की भागीदारी बढ़े और IPO की सफलता सुनिश्चित हो सके। इसके साथ ही, SEBI ने स्टॉक एक्सचेंजों की गवर्नेंस को मजबूत करने के लिए दो एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स (EDs) नियुक्त करने का नियम लागू किया है, जिससे उनकी संचालन संबंधी देखरेख बेहतर होगी। अन्य फैसलों में REITs और InvITs को इक्विटी इंस्ट्रूमेंट के रूप में पुनः वर्गीकृत करना, QIBs को रणनीतिक निवेशकों की परिभाषा में शामिल करना, और AIFs के लिए आसान नियम लागू करना शामिल है। इन सभी बदलावों का उद्देश्य भारतीय पूंजी बाजार को और अधिक पारदर्शी, लचीला और निवेशकों के अनुकूल बनाना है। SEBI ने यह भी स्पष्ट किया है कि अब बड़ी कंपनियों को अपनी IPO प्रक्रिया में कम से कम 2.5% की हिस्सेदारी बेचनी होगी, जो पहले 5% थी, बशर्ते उनका पोस्ट लिस्टिंग मार्केट कैप Rs 5 लाख करोड़ से अधिक हो। इस बदलाव से बड़ी कंपनियों के लिए पूंजी जुटाना आसान होगा, और बाजार में नए शेयरों की आपूर्ति भी बेहतर तरीके से संभाली जा सकेगी। इन सभी नई गाइडलाइंस और नियमों के साथ, SEBI ने भारतीय शेयर बाजार में बड़े IPOs के लिए एक नई शुरुआत कर दी है। यह न केवल कंपनियों के लिए फंडरेजिंग प्रक्रिया को सरल बनाएगा, बल्कि निवेशकों के लिए भी अधिक अवसर और सुरक्षा प्रदान करेगा। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि ये बदलाव आने वाले समय में IPO बाजार को और अधिक गतिशील और मजबूत बनाएंगे, जिससे भारतीय पूंजी बाजार की वैश्विक प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी