इस सप्ताह Indian rupee ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नया इतिहास रचते हुए रिकॉर्ड निचला स्तर छू लिया है। गुरुवार को ₹88.47 प्रति US dollar तक गिरकर रुपया अपनी अब तक की सबसे कमजोर स्थिति में पहुंच गया। साल 2025 की शुरुआत में USD-INR का रेट लगभग ₹85.95 था, जो अब तक 3% से अधिक गिर चुका है। इस गिरावट ने न केवल वित्तीय बाजारों में हलचल मचा दी है, बल्कि आम नागरिकों की जेब पर भी इसका सीधा असर पड़ने लगा है। Indian rupee की कमजोरी का सबसे बड़ा प्रभाव आयातित वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी के रूप में दिखता है। भारत की करीब 90% कच्चे तेल की जरूरतें आयातित होती हैं, जिससे तेल की कीमतों में इजाफा आम होता है। तेल की महंगाई सीधे तौर पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बढ़ाती है, जो परिवहन लागत और मुद्रास्फीति को बढ़ावा देती है। इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्टफोन जैसे आयातित उत्पाद और विदेश में शिक्षा तथा यात्रा के खर्चे भी बढ़ जाते हैं। इस गिरावट के पीछे कई कारण काम कर रहे हैं। सबसे बड़ा कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त व्यापार शुल्क हैं
अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump ने भारत से आयातित वस्तुओं पर 50% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो भारतीय निर्यात को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमजोर कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस टैरिफ से देश की GDP ग्रोथ 60 से 80 बेसिस पॉइंट तक कम हो सकती है और सरकारी वित्तीय घाटा बढ़ सकता है। टैरिफ के कारण भारतीय वस्तुएं महंगी पड़ेंगी, जिससे निर्यात कम होगा और विदेशी मुद्रा की आमदनी घटेगी, जो रुपया कमजोर होने का प्रमुख कारण है। विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) का लगातार भारतीय बाजारों से निवेश वापस लेना भी रुपया कमजोर होने में अहम भूमिका निभा रहा है। जुलाई 2025 से FIIs ने करीब ₹1.03 लाख करोड़ की संपत्तियां बेची हैं। यह बिक्री डॉलर की मांग बढ़ाती है, जिससे रुपया दबाव में आता है। FIIs की ये निकासी मुख्य रूप से व्यापार टैरिफ, कंपनी के आय में धीमापन और वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण हो रही है। इसके अलावा, तेल, सोना कंपनियों और अन्य आयातकों द्वारा अमेरिकी डॉलर की उच्च मांग भी रुपया गिरने का एक और कारण है। ये कंपनियां अपने जोखिम को कम करने के लिए डॉलर खरीदती हैं, जिससे भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ता है। इन सबके बीच Reserve Bank of India (RBI) ने अभी तक मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप नहीं किया है
RBI की रणनीति को लेकर विशेषज्ञों की राय है कि वे धीरे-धीरे रुपये की गिरावट को स्वीकार कर रहे हैं ताकि भारतीय निर्यातकों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल सके और अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम किया जा सके। Indian rupee में इस गिरावट का असर आम आदमी के बजट पर दिखने लगा है। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से परिवहन महंगा हो गया है, जो रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बनता है। इसके अलावा, मोबाइल फोन, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद भी महंगे हो गए हैं। विदेश में पढ़ाई या यात्रा करने वालों को भी बढ़े हुए खर्चों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, शेयर बाजार में भी इस कमजोरी की छाया साफ दिख रही है। विदेशी निवेशकों के पैसे बाहर निकलने से बाजार में अस्थिरता बनी हुई है। हालांकि, कुछ विश्लेषक मानते हैं कि रुपये की यह धीमी गिरावट भारत के निर्यातकों के लिए फायदेमंद हो सकती है क्योंकि इससे भारतीय सामान विदेशी बाजार में सस्ते पड़ेंगे, जो निर्यात को बढ़ावा देगा। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती अमेरिकी व्यापार नीतियों का प्रभाव और विदेशी निवेशकों का रुझान है। इन दोनों ही कारकों ने रुपया कमजोर किया है, लेकिन RBI की मौजूदा नीति से संकेत मिलता है कि वे इस गिरावट को नियंत्रित करने के बजाय एक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं
अंततः, Indian rupee की गिरावट से देश की आर्थिक स्थिति पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। घरेलू वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी, महंगाई का दबाव और विदेशी निवेश में गिरावट जैसे संकेत इस कमजोरी की गंभीरता को दर्शाते हैं। आम नागरिक से लेकर बड़े व्यापारी तक सभी इस स्थिति को बारीकी से देख रहे हैं और आने वाले समय में आर्थिक नीतियों और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर इसका प्रभाव समझने की कोशिश कर रहे हैं